इसबगोल


                     इसबगोल एक बहुपयोगी औषधि है। पूरे विश्व में इसका उत्पादन भारत में ही सर्वाधिक होता है। भारत के अतिरिक्त पाकिस्तान व मिश्र में भी इसकी खेती होती है। भारतवर्ष में सबसे अधिक राजस्थान में इसकी पैदावार होती है। राजस्थान के अतिरिक्त गुजरात, मध्यप्रदेश में भी कुछ जिलों में बोया जाता है। राजस्थान के जालौर, बाड़मेर, पाली, जोधपुर, नागौर, बीकानेर, सिरोही आदि जिलों में सबसे ज्यादा खेती होती है। कम उपजाऊ रेतीली जमीन और कम पानी में इसकी खेती संभव है। इसबगोल को अक्टूम्बर-नवम्बर में बोया जाता है व फरवरी-मार्च में इसकी फसल तैयार हो जाती है।

        इसबगोल का 90 प्रतिशत उत्पादन राजस्थान के रेतीले जिलों में ही होता है। लेकिन इसकी मण्डी उंझा (गुजरात) है। उंझा में कई प्रोसेस हाऊस लगे हुए है। जो इसकी भूसी बनाने का कार्य करते है। उंझा से ही कई कम्पनियां लम्बे समय से घरेलू बाजार में विभिन्न नामों से मार्केटिंग करती है। साथ ही कई बड़ी-बड़ी कम्पनियां पूरे विश्व में निर्यात भी करती है।

                    इसबगोल का उपयोग ज्यादातर पेट के रोगों में किया जाता है। बवासीर, पेटदर्द, कब्ज, दस्त आदि रोगां में इसबगोल की भूसी दूध, दही या गुनगुने पानी के साथ रात को सोने से पहले  लिया जाता है। इसका उपयोग वजन घटाने और एसडिटी में भी किया जाता है। इसबगोल शरीर को ठण्डा रखता है। 10 ग्राम से 20 ग्राम तक इसबगोल की भूसी पानी के साथ रोजाना लेने से कॉलेस्ट्रॉल कम होता है। हृदय को स्वस्थ रखने के लिए भोजन के तुरन्त बाद इसबगोल के वेफर्स खाये जाते है।

                    अमूल की कई आईसक्रीम में इसबगोल मिलाया जाता है। पिछले पाँच सालों में अमेरिका में इसबगोल उपयोग के कई रिसर्च किये गये। आंतो की बीमारियाँ जो  कई प्रकार की दवाईयाँ लेने पर भी ठीक नहीं हो पा रही थी उन बीमारियों को इसबगोल की भूसी के सेवन से ठीक किया गया। मात्र रिसर्च के आंकड़ो के अनुसार अमेरिका में इसबगोल से बने उत्पाद सबसे ज्यादा बिक रहे है। एक रिसर्च के अनुसार 2018 से 2022 के बीच अमेरिका में इसबगोल के करीब 250 प्रोड्क्ट लांच हुए। यह प्रोड्क्ट बहुत तेजी से बाजार मे बिक रहे है। अमेरिका में फूड प्रोड्क्ट बनाने वाली कम्पनियां अपने प्रोड्क्टस में इसबगोल को मिलाती है। जो फूड सप्लीमेंट के काम आता है। यह पेट के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो रहा है। सॉस को गाढ़ा करने के लिए भी इसबगोल का उपयोग किया जाता है।

                    अंतरिक्ष में जाने वाले यात्रियों के भोजन में इसबगोल का बड़ी मात्रा में प्रयोग होता है। कुछ लोग वजन कम करने के लिए इसको दूध के साथ लेते है। भारत में जितना इसबगोल पैदा होता है। उसका 95 प्रतिशत निर्यात किया जाता है। सूअर पालन करने वाली पिगरी में उनको अत्यधिक मोटा करने के लिये मक्का के प्रोड्क्ट सूअर को खिलाते हैं। अधिक से अधिक मक्का खा सके। अतः सूअर की डाइट में इसबगोल व सोनामुखी के प्रोड्क्ट भी उनको खिलाये जाते है।

                     इसबगोल लीवर की गंदगी को बांधकर उसे डिटॉक्स करता है। इसबगोल के साथ खास बात यह है कि लीवर की सारी गंदगी इससे चिपक जाती है और उसको बाहर फेंककर लीवर को डिटॉक्स कर दिया जाता है। इसबगोल की खेती अधिकतर ऑर्गेनिक ही की जाती है। वजन कम करने के लिए इसबगोल का उपयोग सुबह खाली पेट नींबू पानी के साथ कर सकते है। मध्यप्रदेश में नीमच, गुजरात में उंझा, राजस्थान में जोधपुर, नागौर और भीनमाल, मेड़ता, बीकानेर आदि मुख्य मण्डियाँ है। इसबगोल इतनी अधिक बिकने वाली हर्बल औषधि है कि लगभग सारी ही आर्युवेदिक दवाईयाँ बनाने वाली कम्पनियां उंझा से इसबगोल की भूसी खरीदकर अपने-अपने ब्रांड नाम से ब्राडिंग करके मार्केटिंग कर रही है। इसकी खेती का क्षेत्रफल सबसे ज्यादा राजस्थान में बढ़ रहा है और दिनोंदिन इसका निर्यात भी बढ़ रहा है। यह फसल किसानों के लिए केशक्रोप के रूप में बहुत अधिक प्रचलित है।

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