धरती माता की प्रसन्नता
जन्म देने वाली माता और धरती माता के हमारे ऊपर इतने उपकार है कि इन दोनां के आशीर्वाद के कारण ही हम जिंदा है। हमारे ऊपर जितने ऋण हमें जन्म देने वाली माता और पालन-पोषण करने वाली धरती माता के है उनसे हम उऋण नहीं हो सकते हैं। लेकिन हमें सदैव इनके ऋण से उऋण होने के लिए ईमानदारी से प्रयास करते रहना चाहिए।
इनके ऋण उतारने के लिए हमें दोनों माताओं की मन
से सेवा करनी होगी। इनकों सुंदर बनाने के लिए, स्वस्थ बनाने के लिए, प्रसन्न रखने के लिए सदैव कार्य करते रहना चाहिए। धरती माता
के ऋण, जन्म देने वाली माँ से
कुछ अधिक ही होते है। कुछ ऐसे कार्य है जो हम नियमित करते रहे तो हमारी धरती माता
प्रसन्न रहेगी, स्वस्थ रहेगी एवं
सदैव उसकी मुद्रा आशीर्वाद वाली रहेगी।
हमने कृषि का उत्पादन
बढ़ाने के लिए अत्यधिक रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग किया। इनके
दुष्प्रभाव से हमारी धरती माता घायल हो गयी। उसके शरीर में बड़े-बड़े घाव हो गये।
भला ऐसी अवस्था में धरती माता हमारा पेट कैसे भरेगी? हमें यह प्रण करना है कि सौ प्रतिशत जैविक खेती ही करेंगे।
किसी भी प्रकार के जहरीले रसायनों का प्रयोग नहीं करेंगे। प्रयास करो कि पुराने
घाव भर जायें और नये घाव नहीं हो पाये। खेतों में सड़ी हुई कम्पोस्ट खादों का ही
प्रयोग करें। गाय का गोबर और खेती से बचा हुआ कूड़ा-करकट सड़ाकर समय-समय पर खेत में
डालते रहे, इससे खेत मे नाइट्रोजन,
फॉस्फोरस की पूर्ति होगी। साथ ही शु़द्ध
उत्पादन बढ़ेगा। हमारी धरती माता प्रसन्न रहेगी।
बिजली, डीजल और पेट्रोल की खपत कम से कम करे। अधिकतर सौर ऊर्जा का उपयोग करे, जिससे जहरीली गैसां से बचाव होगा। बिजली से
चलने वाले उपकरण अब सौर ऊर्जा से चलने लगे है। इनका उपयोग बढ़ावे। अपने द्वारा
प्लास्टिक की चीजों का कम से कम इस्तेमाल होना चाहिए। खेत में फेंका हुआ प्लास्टिक
सड़ता नहीं है। कोई खाने की चीज यदि प्लास्टिक में लगी हो तो गाय इसको खा लेती हैं।
गाय के पेट में जाकर वह प्लास्टिक पचता नहीं है। वह इकट्ठा होता रहता है और गाय
बीमार हो जाती है। कई गौशालाओं में और पशु चिकित्सालयों मे ऑपरेशन करके गाय के पेट
से 20-20 किलो तक प्लास्टिक
निकाला गया और गाय को बचाया गया। ऐसा सराहनीय कार्य करने वालों को धन्यवाद। अतः
किसी भी रूप में प्लास्टिक का उपयोग नहीं करना है।
अधिक से अधिक वृक्षारोपण करके धरती माता को
अतिसुंदर बनाना है। वृक्ष धरती का श्रृंगार व आभूषण होता है। जहाँ ज्यादा पेड़
हांगे वहाँ की भूमि उपजाऊ बनेगी। उसमें जल धारण की क्षमता अधिक होगी कार्बन ज्यादा
मिलेगा, भूमि में नमी लम्बे समय
तक बनी रहेगी, सुक्ष्म जीवों को
पनपने का मौका मिलेगा और पक्षियों को रहने के लिए आसरा मिलेगा। इन सबसे हमारी धरती
अधिक अन्न उत्पन्न करेगी। बारिश के पानी को खेत में रोकना बहुत बड़ा उपकार है। पानी
को बहने नहीं देना चाहिए। बहता हुआ पानी भूमि की उर्वरा शक्ति एवं पोषक तत्व अपने
साथ बहा ले जाता है। अतः पानी को खेत में रोकना अत्यंत आवश्यक है।
जल प्रदूषण एवं वायु प्रदूषण करने वाले उद्योग-धंधों
से बचना चाहिए। प्रदूषित पानी धरती माता को बीमार कर देता है। जिस जमीन में
प्रदूषित पानी एक बार चला गया, वह जमीन बंजर हो
जाती है, उसमें घास का तिनका भी
नहीं उग सकता। इसका एक उदाहरण पाली जिले की बांडी नदी में छोड़े जाने वाले कलर और
कैमिकल युक्त पानी का प्रभाव लम्बी दूरी तक देखा जा सकता है। जोजरी नदी, बांडी नदी और लूणी नदी के दोनो तरफ सारे जल
स्त्रोत प्रदूषित हो गये है। इनका पानी मनुष्य, पशु वन्यजीव, पक्षी या खेती, किसी के काम का
नहीं बचा है। लाखों हेक्टेयर जमीन बर्बाद हो चुकी है। अतः इस प्रकार के उद्योग-धंधों
की बजाय ऐसे उद्योग-धंधे लगाने चाहिए जिनमें जल और वायु प्रदूषण नहीं हो।
अभी भी
अवसर है कि हम पेड़ को कटने से बचावे, नये वृक्षारोपण करे, सौर ऊर्जा का
उपयोग बढ़ावे, जैविक व ससटेनेबल
एग्रीकल्चर की और बढ़े, जल संरक्षण और
भूमि संरक्षण के काम करें। पशुधन और वन्यजीवों का संरक्षण करें तो हम धरती माता से
उऋण हो सकते है। धरती माता ने जो संसाधन हमारे जीवनयापन के लिए दिये उनकी सुरक्षा
करना और सदुपयोग करना हमारा प्रथम दायित्व है। इन सब कामों को करके हम धरती माता
को प्रसन्न, सुंदर, स्वस्थ बना सकते है। प्रसन्न माता ही पु़त्र को
आशीर्वाद देती है।
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