रेगिस्तान का जहाज : ऊंट

             


राजस्थान सरकार ने जून 2014 में ऊंट को राज्य पशु घोषित किया है। इसको रेगिस्तान का जहाज भी कहा जाता है। ऊंटो की गिरती जनसंख्या चिंता का विषय है। ऊंटों की बड़े पैमाने पर कतलखाने में चोरी छुपे ले जाये जा रहे है। राजस्थान सरकार के पुलिस विभाग के ऑकड़ो से पता चलता है कि पिछले तीन वर्ष में ऊंटो की तस्करी के 76 मामले दर्ज किए गए, जिसमें 939 ऊंटों को वध के लिए बाहर ले जाया गया। राजस्थान सरकार ने इसकी तस्करी को रोकने के लिए 2015 में सख्त कानून बनाया था। जिसके अन्तर्गत 196 लोगों को गिफ्तार किया गया है।

               22 जून को पूरे विश्व में वर्ल्ड कैमल डे मनाया जाता है। ऊंट अनुसंधान संस्थान बीकानेर में इस दिन कई कार्यक्रम आयोजित किये जाते है। इसे देखने के लिए पूरे विश्व से पर्यटक आते है। ऊंटो से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार की प्रतियोगितायें इसमें आयोजित की जाती है। ऊंटो की सजावट, उनके नाच, उनकी परेड, उनकी बाल कटिंग और विभिन्न प्रकार के करतबों की प्रतियोगितायें होती है। ऊंटो के संरक्षण एवं विकास के लिए वैज्ञानिक अपने-अपने रिसर्च पेपर पढ़ते है। सरकारी नीतियों का मूल्यांकन भी अधिकारी करते है। प्रतियोगिताओं में विजेता ऊंट पालकों को पुरूस्कृत किया जाता है।

               रेगिस्तान का जहाज ऊंट यहाँ के आवागमन एवं दूध का साधन है। यह गर्म रेत पर बहुत कम पानी से भी आसानी से लम्बी दूरी तय कर सकता है। रेगिस्तान की अर्थव्यवस्था में इसका विशेष स्थान है। पशु गणना के आंकडों से मालूम होता है कि ऊंटो की कमी हो रही है। धीरे-धीरे यह लुप्त प्रायः होने के संकेत मिल रहे है। 2012 में ऊंटो की संख्या 3,26,000 थी। जो घटकर 2,13,000 रह गयी है। पूरे भारत में 2012 में 4 लाख ऊंट थे। जो घटकर 2.50 लाख रह गये है। सबसे ज्यादा ऊंट राजस्थान में (85 प्रतिशत) पाये जाते है। इसके अलावा गुजरात, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी पाये जाते है। सभी जगह ऊंटो की संख्या में गिरावट आयी है। अलवर, बनारस, गुढ़ामालानी आदि कई जगहों पर भारी मात्रा में ऊंटो की तस्करी पकड़ी गयी। पकड़े गये ऊंटो को मैनका गांधी फाउण्डेशन सिरोही (राजस्थान) में भेजा जाता है। सिरोही स्थित इस फाउण्डेशन में ऊंटो का रखरखाव किया जाता है। ऊंटों के संरक्षण, संवर्धन आदि पर यहाँ शोध कार्य किये जाते है। समय-समय पर ऊंट पालकों के सम्मेलन कराये जाते है। जिसमें ऊंट पालकों की समस्याओं का चिंतन किया जाता है।

               पिछले दिनों 1 अगस्त 2023 जोधपुर जिले के शेरगढ़ थाना क्षेत्र गाँव आगोलाई में राज्य पशु ऊंट की तस्करी का बड़ा मामला सामने आया। यहां पर 14 ऊंटो को निर्दयतापूर्वक हाइड्रो मशीन से ट्रक के अंदर डाला जा रहा था। पुलिस के पहुंचने पर तस्कर मौके से भाग गये। पुलिस ने ग्रामीणों की मदद से ऊंटो को मैनका गांधी फाउण्डेशन सिरोही में पालन-पोषण के लिए भेजा गया। इसके पहले भी सेतरावा गाँव में एक टर्बो से 18 ऊंट बरामद कर ऊंट तस्करों को पकड़ा गया था। गुढ़ामालानी में एक ट्रक से 13 ऊंटो को बरामद किया गया तथा पाँच तस्करों को पकडने मे सफलता मिली। उसी प्रकार अलवर के बड़ौदामेव थाना पुलिस ने एक ऊंट व चार ऊंट के बच्चो को बरामद किया जिसमें 2 तस्कर भी गिफ्तार किये गये। इसी प्रकार वाराणसी में 12 ऊंटो को 27 जून को तस्करों से छुड़ाकर सिरोही भेजा गया। इन ऊंटों को उत्तरप्रदेश से बंगाल ले जाया जा रहा था। ऊंटो की तस्करी के मामले बढ़ते ही जा रहे है। राजस्थान में ऊंटो के प्रजनन को प्रोत्साहित करने के लिए एक महत्वपूर्ण योजना बनायी गयी हैं। इसके अन्तर्गत प्रत्येक ऊंट के बच्चे के जन्म के बाद पशु पालक को 10,000 रू. का पुरूस्कार दिया जाता है।

               राजस्थान मे सबसे ज्यादा ऊंट बाड़मेर जिले में पाये जाते हैं। लोकदेवता पाबू जी को ऊंटो का देवता माना जाता है। राजस्थान में राईका (रेबारी) जाति के लोग ऊंट पालने का काम करते है। ऊंट की खाल से कई कलात्मक वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। इस कला को ‘‘उस्ताकला‘‘ कहते है। ऊंट की खाल से बनाये गये पा़़त्रों मे पानी, तेल और घी भरकर रखा जाता है। ऊंटनी के दूध में भरपूर मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है। बीकानेर स्थित उरमूल डेयरी भारत की एकमात्र ऊंटनी के दूध की डेयरी है।

               बीकानेर के महाराजा गंगासिंह जी ने प्रथम यु़द्ध में ‘‘गंगारिसाला‘‘ नाम से ऊंटो की एक सेना बनायी थी। इसके पराक्रम को पहले और दूसरे विश्व युद्ध में देखने के बाद बीएसएफ में शामिल कर लिया गया। आजकल उष्ट्र कोर भारतीय अर्द्ध सैनिक बल के अन्तर्गत सीमा सुरक्षा बल का एक महत्वपूर्ण भाग है।

               भारतीय कृषि अंनुसंधान परिषद् नई दिल्ली के संस्थान के रूप में राष्ट्रीय उष्ट्र अंनुसंधान संस्थान जोडबीर बीकानेर 1995 से लगातार ऊंटो के विकास के लिए काम कर रहा है। राजस्थान मे बीकानेरी, जैसलमेरी, मेवाड़ी, नांचना, गौमठ आदि ऊंटों की नस्ले पाई जाती है। ऊंट के बालों से कलात्मक कालीन और गलीचें बनाये जाते है। इस प्रकार ऊंट रेगिस्तान में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का प्रमुख हिस्सा है।

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