जैविक खेती में सफलता का सौपान
जैविक खेती आजकल पूरे देश में ज्वलन्त मुद्दा हैं। हर जिले में कुछ न कुछ खेतों में कोई न कोई फसल की जैविक खेती हो रही हैं। कई जैविक खेती के सर्टीफाइड खेत भी हैं। विभिन्न एजेन्सीज जैविक खेती को सर्टीफिकेशन का काम एपीडा के मार्ग दर्शन में कर रही हैं। मेरा यह मानना है कि जब तक पूरा का पूरा गांव ऑर्गेनिक खेती नहीं करता तब तक जैविक खेती का परिणाम नहीं मिलने वाला हैं।
किसानों व सरकार को चाहिये कि एक से अधिक गांवां के समूह व
कलस्टर बना कर उन गांवों में पूर्ण रूप से जैविक खेती के लिये कार्यक्रम बनाया
जाय। मान लो एक आदमी 100 बीघा में जैविक
खेती कर रहा हैं और उसके चारों और गैर जैविक खेती हो रही हो तो जैविक खेती कठिन
होगी। उसका सर्टीफिकेशन भी मुश्किल होगा। अतः गांव के गांव मिलकर यदि जैविक खेती
का कठोर निर्णय लेते है तो उनको क्रियान्वयन सर्टीफिकेशन व मार्केटिंग आदि सबमें
आसानी रहेगी। हमारे देश भारत में जैविक खेती का क्षेत्रफल तेज गति से बढ़ रहा है, उनका सर्टीफिकेशन भी बढ़
रहा है लेकिन पूरा गांव का गांव जैविक हो ऐसा देखने को नहीं मिलता हैं। झारखण्ड
में 12 गांवों का समूह
जैविक खेती कर रहा है यह बहुत सराहनीय कदम हैं।
बोकारो के कसामार और जरीडीह के 12 से अधिक गांवों में
किसान जैविक खेती कर रहे हैं। इन गावों में 1200 एकड़ से अधिक जमीन पर कोई भी फसल ऐसी नहीं हैं जिसमें
रासायनिक खाद या कीटनाशक का इस्तेमाल हो रहा हो। इन गांवों का अगुवा है भस्की पंचायत
का टोंडरा गांव। यहां की 1200 की आबादी में 600 लोग खेतिहर हैं।
इन्हांने न केवल खेत में जैविक फसल लगाई, बल्कि आसपास के गांवो में भी किसानों को फसल में रासायनिक
खाद नहीं डालने के लिए प्रोत्साहित किया। इस प्रकार पूरा 1200 एकड़ खेती ऑर्गेनिक हो
रही हैं।
इसका नतीजा यह हुआ कि गांव की जैव विविधता सुधरी और
स्वास्थ्य भी बेहतर हुआ। महिलाओं ने बताया कि इन गांवो में कोई भी गंभीर बीमारी
नहीं हैं। सिजेरियन प्रसव की जरूरत नहीं पड़ती। बच्चे बीमार नहीं पड़ते। टमाटर की
फसल भी यहां दिखी। ग्रामीण बताते हैं कि मई में सामान्य से अधिक गर्मी के कारण
जहां राज्य में टमाटर की फसलों में फूल कम आने से उत्पादन घटा और इसकी कीमत 100 रूपये प्रति किलो से
अधिक हो गई। वहीं हमारे गांवां में फूल न कम हुए, न उत्पादन। अब भी सभी घरों में सहजता से टमाटर
देखे जा सकते हैं। टांडरा की नूनीबाला देवी बताती हैं कि हरित क्रांति के
नेतृत्वकर्ता रहे कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन ने जब पर्यावरण की गंभीर दशाओं
को देख जैविक खेती अपनाने की बात की तो इसे हमने गंभीरता से लिया। हमारी पंचायत
भस्की ने ‘‘नो केमिकल, गो केमिकल‘‘ का
नारा दिया है। यहां 125 एकड़ में जैविक खेती
हो रही हैं। धान, मकई, अरहर और सब्जियों की खेती
सबसे ज्यादा हैं। पंचायत के मुखिया मंटू मरांडी और पूर्व मुखिया सुनिता कुमारी
दोनां सक्रिय हैं।
सुनिता तो जैविक खेती को लेकर होने वाली हर बैठक में शामिल
होती हैं। दुर्गापुर पंचायत के उप मुखिया पंचानंन महतो कहते हैं कि हमने इसे
गंभीरता से लिया कि जल-जमीन तभी सुरक्षित रह सकती है जब जैविक खेती को बढ़ावा दें।
रासायनिक खेती के मुकाबले जैविक खेती न सिर्फ टिकाऊ है बल्कि इसने हमें खेती का
ऐसा मॉडल दिया है, जिसमें शुरूआती
निवेश के बाद अब खेती की लागत घटती जा रही है और हमारी उपज, मिट्टी और पर्यावरण में
सुधार हुआ है। जैविक खेती का जो शुभ फल मिलना चाहिये वह इन गांवों में मिल रहा
हैं। इसी प्रोजेक्ट को मॉडल समझ कर जैविक खेती का कार्यक्रम बनाया जाय तो जल्दी
सफलता मिलेगी व आशा के अनुरूप परिणाम मिलेंगें।
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