कल्पवृक्ष

      


   समुद्र मंथन के 14 रत्नों में से एक कल्पवृक्ष की भी उत्पति हुई थी जिसे देवराज इन्द्र को दिया गया। इन्द्र ने इसको ‘‘सुरकानन वन‘‘ (हिमालय के उत्तर में) स्थापित किया। वेद और पुराणों में कल्पवृक्ष का उल्लेख मिलता है। कल्पवृक्ष स्वर्ग का एक विशेष वृक्ष है। पौराणिक धर्मग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर व्यक्ति जो भी इच्छा करता है, वह पूर्ण हो जाती है, क्योंकि इस वृक्ष में अपार सकारात्मक ऊर्जा होती हैं। ओलिएसी कुल के इस वृक्ष का वैज्ञानिक नाम ओलिया कस्पीडाटा है। यह यूरोप के फ्रांस व इटली में  भी पाया जाता हैं। यह दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में भी पाया जाता हैं। भारत में इसका वानस्पतिक नाम बंबोकेसी हैं। इसको फ्रांसीसी वैज्ञानिक माइकल अडनसन ने 1775 में अफ्रीका में सेनेगल में सर्वप्रथम देखा था, इसी आधार पर इसका नाम अडनसोनिया टेटा रखा गया।  वृक्षों और जड़ी-बुटियों के जानकारों के मुताबिक यह एक बेहद मोटे तने वाला फलदायी वृक्ष है जिसकी टहनी लंबी होती हैं और पत्ते भी लंबे होते हैं। दरअसल, यह वृक्ष पीपल के वृक्ष की तरह फैलता है और इसके पत्ते कुछ-कुछ आम के पत्तों की तरह होते हैं। इसका फल नारियल की तरह होता है, जो वृक्ष की पतली टहनी के सहारे नीचे लटकता रहता है। इसका तना देखने में बरगद के वृक्ष जैसा दिखाई देता है। इसका फूल कमल के फूल में रखी किसी छोटी-सी गेंद में निकले असंख्य रूओं की तरह होता हैं। पीपल की तरह ही कम पानी में यह वृक्ष फलता-फूलता हैं। सदाबहार रहने वाले कल्पवृक्ष की पत्तियां कम ही गिरती हैं, हालांकि इसे पतझड़ी वृक्ष भी कहा गया है। यह वृक्ष लगभग 70 फुट ऊंचा होता है और इसके तने का व्यास 35 फुट तक हो सकता हैं। 150 फुट तक इसके तने का घेरा नापा गया हैं। इस वृक्ष की औसत जीवन अवधि 2500-3000 साल है। कार्बन डेटिंग के जरिए सबसे पुराने फर्स्ट टाइमर की उम्र 6,000 साल आंकी गई हैं।

                    औषधीय गुणों के कारण कल्ववृक्ष की पूजा की जाती हैं। भारत में रांची, अल्मोड़ा, काशी, नर्मदा किनारे, कर्नाटक आदि कुछ महत्वपूर्ण स्थानों पर ही यह वृक्ष पाया जाता हैं। यह वृक्ष उत्तरप्रदेश के बाराबंकी के बोरोलिया में आज भी विद्यमान है। कार्बन डेटिंग से वैज्ञानिकों ने इसकी उम्र 5,000 वर्ष से भी अधिक बताई हैं। ग्वालियर के पास कोलारस में भी कल्पवृक्ष है जिसकी आयु 2,000 वर्ष से अधिक की बताई जाती हैं। ऐसा ही एक वृक्ष राजस्थान में अजमेर के पास मांगलियावास में हैं और दूसरा पुट्ठपर्थी के सत्य साईं बाबा के आश्रम में मौजूद है। राजस्थान के बिलाड़ा से 6 किलोमीटर पूर्व में भी विशाल कल्पवृक्ष है। प्रयागराज में हजारों वर्ष पुराना कल्पवृक्ष खतरे में है। भूंसी में गंगा किनारे ढ़लान पर कल्प वृक्ष की जड़ो से मिट्ठी का कटान तेज गति से हो रहा हैं। यह कल्पवृक्ष लोगों की धार्मिक आस्था का केन्द्र हैं। लोग यहां मन्नत मांगते है, और पूरी होने पर पवित्र पेड़ की जडों से मिट्ठी ही जाते है।

                    यह एक परोपकारी मेडिसनल ट्री है अर्थात औषधीय वृक्ष है। इसमें संतरे से छः गुना ज्यादा विटामिन ‘सी‘ होता है। गाय के दूध से दोगुना कैल्शियम होता है और इसके अलावा सभी तरह के विटामिन पाए जाते हैं। इसके पत्तों को धोकर सूखे या पानी में उबालकर खाया जा सकता है। पेड़ की छाल, फल और फूल का उपयोग औषधि के लिए किया जाता हैं।

        इस वृक्ष की 3 से 5 पत्तियों का सेवन करने से हमारे दैनिक पोषण की जरूरत पूरी हो जाती है। शरीर को जितने भी तरह के सप्लीमेंट की जरूरत होती है इसकी 5 पत्तियों से उसकी पूर्ति हो जाती है। इसकी पत्तियां उम्र बढ़ाने में सहायक होती हैं, क्योंकि इसके पत्ते एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं। यह कब्ज और एसिडिटी में सबसे कारगर हैं। इसके पत्तों में एलर्जी, दमा, मलेरिया को समाप्त करने की शक्ति हैं। गुर्दे के रोगियों के लिए भी इसकी पत्तियों व फूलों का रस लाभदायक सिद्ध हुआ हैं। इसके बीजों का तेल हृदय रोगियों के लिए लाभकारी होता हैं। इसके तेल में एचडीएल (हाईडेंसिटी कोलेस्ट्रॉल) होता हैं। इसके फलों में भरपूर रेशा (फाइबर) होता हैं। मानव जीवन के लिए जरूरी सभी पोषक तत्व इसमें मौजूद रहते हैं। पौष्टिक  तत्वों से भरपूर इसकी पत्तियों से शरबत बनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार हमारे शरीर में आवश्यक 8 अमीनो एसिड में से 6 इस वृक्ष में पाए जाते हैं।

                    कल्पवृक्ष का फल आम, नारियल और बेल जैसा गुणों में होता हैं। अर्थात् यह कच्चा रहने पर आम और बेल तथा पकने पर नारियल जैसा दिखाई देता है जब सूख जाता है तो सूखे खजूर जैसा नजर आता है।

                    यह वृक्ष जहां भी बहुतायत में पाया जाता है, वहां सूखा नहीं पड़ता। यह रोगाणुओं का डटकर मुकाबला करता हैं। इस वृक्ष की खासियत यह है कि कीट-पतंगों को यह अपने पास फटकने नहीं देता और दूर-दूर तक वायु के प्रदूषण को समाप्त कर देता है। इस मामले में इसमें तुलसी जैसे गुण हैं। इसकी छाल से वेजीटेबल डाईज भी बनाई जा सकती है।

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