अक्षय वट

       


 पुराणों में वर्णन आता है कि कल्पांत या प्रलय में जब समस्त पृथ्वी जल में डूब जाती हैं उस समय भी वट का एक वृक्ष बच जाता हैं। अक्षय वट कहलाने वाले इस वृक्ष के एक पत्ते पर ईश्वर बालरूप में विद्यमान रहकर सृष्टि के अनादि रहस्य का अवलोकन करते हैं। अक्षय वट के संदर्भ कालिदास के रघुवंश तथा चीनी यात्री हृन त्सांग के यात्रा विवरणों में मिलते हैं। वैसे तो इस धरती पर करोड़ों वृक्ष हैं, लेकिन उनमें से कुछ वृक्ष ऐसे भी हैं जो हजारों वर्षों से जिंदा है और कुछ ऐसे हैं जो चमत्कारिक हैं। कुछ ऐसे भी वृक्ष हैं जिन्हें किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति ने हजारों वर्ष पहले लगाया था उस व्यक्ति ने उस वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान या समाधि लगाई थी।

        वट वृक्ष की जड़ में ब्रह्म, तने में भगवान विष्णु व डालियों में देवों के देव महादेव निवास करते हैं। पेड़ की शाखायें, जो नीचे की ओर लटकी रहती है उन्हें सावित्री कहते हैं। वट वृक्ष के नीचे बैठ कर वट-सावित्री की पूजा की जाती हैं। मान्यता है कि इसी पेड़ के नीचे बैठ कर सावित्री ने तपस्या की थी और यमराज ने प्रसन्न होकर उसके पति के प्राण वापस लौटा दिये थे। सुहाग की दीर्घायु के लिये इस पेड़ की पूजा वट-सावित्री के दिन की जाती हैं।

        बरगद की पूजा करना बहुत ही फलदायी माना गया हैं। इसकी पूजा करने से त्रिदेवों की कृपा होती हैं। शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलती हैं। नौकरी- व्यापार में लाभ होता हैं। दाम्पत्य जीवन में खुशहाली आती हैं। सन्तान सुख की प्राप्ति होती हैं। अतः हर व्यक्ति को अपने जीवन काल में कम से कम एक बरगद का वृक्ष अवश्य लगाना चाहिये, इससे पुण्य फल की प्राप्ति होती हैं और भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं।

        भारत में ऐसे सैंकड़ों वृक्ष हैं लेकिन पांच वृक्षों का पुराणों में उल्लेख मिलता हैं। पहला प्रयागराज में अक्षयवट, दूसरा उज्जैन में सिद्धवट, तीसरा मथुरा में वंशीवट, चौथा गया में गया वट और पांचवां नासिक पंचवटी में पंचवट। पृथ्वी को बचाने के लिए भगवान ब्रह्या ने संगम पर एक बहुत बड़ा यज्ञ किया था। इस यज्ञ में वह स्वंय पुरोहित, भगवान विष्णु यजमान एवं भगवान शिव उस यज्ञ के देवता बने थे। तब अंत में तीनों देवताओं ने अपनी शक्ति पुंज के द्वारा पृथ्वी के पाप बोझ को हल्का करने के लिए एक ‘वृक्ष‘ उत्पन्न किया। यह एक बरगद का वृक्ष था जिसे आज अक्षयवट के नाम से जाना जाता है। जो आज भी विद्यमान है। जैसा कि इसका नाम ही है अक्षय। अक्षय का अर्थ होता है जिसका कभी क्षय न हो, जिसे कभी नष्ट न किया जा सके, इसीलिए इस वृक्ष को अक्षय वट कहते हैं। पुरातत्व विज्ञान के वैज्ञानिक शोध के अनुसार इस वृक्ष की रासायनिक उम्र 3250 ईसा पूर्व की बताई जाती है।

        इस वृक्ष को मनोरथ वृक्ष भी कहते हैं अर्थात मोक्ष देने वाला या मनोकामना पूर्ण करने वाला। यह वृक्ष प्रयाग के संगमतट पर स्थित हैं। व्हेनत्सांग 643 ईस्वी में प्रयाग आया था तो उसने लिखा-नगर में एक देव मंदिर है जो अपनी सजावट और विलक्षण चमत्कारों के लिए विख्यात है। इसके विषय में प्रसिद्ध है कि जो कोई यहां एक पैसा चढ़ाता है वह मानो और तीर्थ स्थानों में सहस स्वर्ण मुद्राऐं चढ़ानें जैसा हैं। मंदिर के आंगन में एक विशाल वृक्ष है जिसकी शाखाएं और पत्तियां बड़े क्षेत्र तक फैली हुई हैं।

        पत्रकार अंजलि सिंह राजपूत की रिपोर्ट के अनुसार ढाई सौ साल पुराना एक ऐसा बरगद का पेड़ जिसके अंदर लोग घूमते हैं, तो रास्ता भटक जाते हैं। इसकी शाखाएं अनगिनत हैं और लटें जमीन को छूती हैं। यह पेड़ ढाई एकड़ जमीन पर फैला हुआ है और इसके अंदर जाने पर यह महल जैसा लगता हैं। वहीं, इसके चारों और स्तंभ हैं। यह पेड़ लखनऊ के पास बख्शी का तालाब में स्थित सिद्धपीठ मां चंद्रिका देवी से ढाई किलोमीटर दूर मांझी गांव में हरिवंश बाबा अक्षय वट आश्रम में मौजूद हैं। वहीं पर 300 साल पहले हरिवंश बाबा तपस्या करते थे।

        अक्षयवट का उल्लेख रामायण में भी किया गया हैं जिसमें इसका नाम नीलवट के रूप में मिलता है। मान्यता है कि वन जाने के वक्त जब भगवान श्रीराम जब भारद्वाज आश्रम पहुंच तब कुछ समय बाद वहां से गंगा पर कर अक्षयवट दर्शन किया। फिर माता सीता ने भी इस वृक्ष की पूजा की और अपने अक्षय सौभाग्य की कामना की। इस प्रकार उस समय अक्षयवट गंगा के पूरब दिशा में था। जबकि इस समय अक्षयवट इलाहाबाद किले के अंदर में हैं। साथ ही गंगा की अक्षयवट की पूर्व दिशा में प्रवाहित हो रही हैं। पहले अक्षयवट पश्चिम और भारद्वाज आश्रम के पूर्व दिशा में गंगा जी प्रवाहित होती थी। कहते हैं कि अपने पितरों के मोक्ष की कामना के लिए जो भी श्रद्धालु श्राद्ध करते हैं, उसकी पूर्णाहुति इसी अक्षयवट के नीचे करते हैं। पùपुराण में भी अक्षयवट का जिक्र मिलता है। माना जाता है कि जो मनुष्य इस वट वृक्ष की छाया में पहुंच जाता है वह इस संसार के जन्म-मरण के बंधनों से मुक्त हो जाता है।

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