ग्लोबल बोइलिंग

            


 प्रसिद्ध पर्यावरणविद् डॉ. सीमा जावेद ने अपने सार गर्भित लेख जो दैनिक भास्कर में प्रकाशित हुआ में अपने विचार प्रकट किये। इस लेख में डॉ. जावेद ने ‘‘ग्लाबल वार्मिंग‘‘ को अति संवेदनशील शब्द ‘‘ग्लोबल बोइलिंग से सम्बोधित किया।

        मानव सभ्यता के इतिहास में पिछले सवा लाख बरसों में इस साल 2023 में जुलाई का महीना सबसे गर्म रहा। ग्लोबल वार्मिंग के इस तरह हद से गुजर जाने का असर दुनिया के तमाम देशां सहित भारत पर भी साफ नजर आ रहा है। मौसम के इस बदलते रंग से दुनियाभर के वैज्ञानिक और पर्यावरणविद् चिंतित हैं। देश के किसी कोने में गर्मी की मार बेहाल कर रही है, तो कहीं झमाझम बारिश से बाढ़ और भूस्खलन हो रहे हैं।

                    भारत में मौसम के रिकॉर्ड टूट रहे हैं। साल 2023 की शुरूआत अगर सर्दी की जगह तेज गर्मी के साथ हुई, तो फरवरी में तापमान ने 123 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया। आगे पूर्वी और मध्य भारत में अप्रैल और जून में उमस भरी गर्मी की संभावना जलवायु परिवर्तन के कारण 30 गुना अधिक हो गई थी। उसी दौरान चक्रवात बिपरजॉय अरब सागर में 13 दिनों तक सक्रिय रहा और लगभग दो हफ्तों की सक्रियता के चलते साल 1977 के बाद सबसे लंबी अवधि का चक्रवात बना। फिलहाल पूरे उत्तर पश्चिम भारत में बारिश कहर बरपा रही है।

                    पिछले दिनों तेलंगाना के वारंगल में सड़कें लबालब हो गई। गंगा हरिद्वार में खतरे के निशान से ऊपर रही। फरीदकोट में सैलाब का मंजर था, हिमाचल में एक बांध क्षतिग्रस्त हुआ। हैदराबाद में जलभराव हुआ। उत्तराखंड में भूस्खलन से रास्ते बंद हो गए। महाराष्ट्र में 13 हजार हेक्टेयर फसल बर्बाद हो गई। मुंबई-पूणे एक्सप्रेसवे पर भूस्खलन हुआ। 25 जुलाई को कावेरी नदी उफान पर रही, यमुना 13 जुलाई को दिल्ली में अब तक के सर्वोच्च स्तर पर पहुंचने के बाद फिर खतरे के निशान से ऊपर रही। क्लाइमेट सेंट्रल के अनुसार 14-16 जून के बीच उत्तर प्रदेश और बिहार में हीटवेव मारक रही। उत्तर प्रदेश व बिहार अनावृष्टि की मार झेल रहे हैं। फसलें अकाल की वजह से बर्बाद हो गयी।

            इससे पहले सन् 2019 में जुलाई का महीना सबसे गर्म रहा था, लेकिन इस साल जुलाई ने पिछला रिकॉर्ड तोड़ दिया। इस साल जुलाई का औसत तापमान 2019 के मुकाबले 0.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया। जुलाई में औसत वैश्विक सतह का तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। जर्मनी की लाइपजिग यूनिवर्सिटी में जलवायु वैज्ञानिक डॉक्टर कास्टन हौशटाइन के एक विश्लेषण में यह बात कही गई है। जुलाई में तापमान में हुई वृद्धि सहमत अधिकतम दीर्घकालिक स्तर पर है।

                    हाल के वर्षो में वैश्विक तापमान  में वृद्धि के बावजूद ला नीना (ठंड) के प्रभाव के कारण दुनिया पर इसका असर अपेक्षाकृत कम ही रहा। अब, जब दुनिया अल नीनो (गर्मी) के दौर में दाखिल हो रही है, तब ग्लोबल वार्मिंग की नई ऊँचाईयों पर पहुंचने के आसार प्रबल हो जाएंगे।

                    ऐसे में ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर रखने का लक्ष्य पहुंच से बाहर हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के मुताबिक क्लाइमेट चेंज अब ‘काबू से बाहर‘ हो गया है। अब ग्लोबल वार्मिंग नहीं ग्लोबल बॉइलिंग का वक्त चल रहा है। यदि हम इसे रोकने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाने में देरी करेगें तो भयानक स्थिति में पहुंच जाएंगे।

                    जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से मानसून के पैटर्न में आमूलचूल बदलाव और फर्क पड़ा है। अब बारिश की तर्ज को समझ पाना मुश्किल होता जा रहा है। पहले सावन, भादों में बारिश एक निश्चित औसत से बरसती थी। अब ऐसा कुछ नहीं हैं। कुल मिलाकर भारत में बढ़ती चरम मौसम की घटनाओं में जलवायु परिवर्तन की भूमिका हर गुजरते साल के साथ मजबूत होती जा रही है। बरसात का प्रभाव सीधा-सीधा हमारी फसलों पर पड़ता हैं। कृषि प्रधान देश भारत में यदि कृषि पर दुष्प्रभाव पड़ता है तो सारे देश की आर्थिकी पर असर पड़ता हैं।

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