हरसिंगार का पेड़

           


 हरसिंगार एक फूल देने वाला वृक्ष होता हैं। जिसको शैफाली, परिजात आदि नामों से भी जाना जाता हैं। ये दस से पन्द्रह फीट ऊँचा झाड़ीनुमा  पेड़ होता हैं। इसमें अत्यंत सुंगन्धित फूल लगतें हैं। जो रात को पेड़ के नीचे गिर जाते हैं। इस पेड़ के पत्ते, छाल, पुष्प आदि औषधि निर्माण में काम आते हैं।

        यह बहुत ही शुभ पौधा माना गया हैं। यह पौधा लक्ष्मी जी को प्रिय हैं। इस पौधे को घर में लगाने से घर में शांति, समृद्धि, प्रसन्नता और स्वास्थ्य ठीक रहता हैं। घर की पूर्व या उत्तर दिशा में इसे लगाया जा सकता हैं। इसको घर में लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता हैं और नकारात्मक ऊर्जा को दूर भगाता हैं। इसको अंग्रेजी में ‘‘नाईट जैसमिन‘‘ कहते हैं। क्यांकि यह रात में खिलता हैं।

        वास्तुशास्त्र के अनुसार परिजात को दक्षिण दिशा में नहीं लगाना चाहिए। जिस घर में परिजात का पौधा बोया जाता हैं उस घर में धन की कमी कभी नहीं होती। यह पेड़ समुद्र मंथन के समय लक्ष्मी के साथ निकला था। इसको लगाने से परिवार के सदस्यों की दीर्घायु होती हैं तथा उनके पूर्वजन्म के पापों को शुद्ध करता हैं। समुद्र मंथन में निकलने के बाद देवताओं के राजा इंद्र ने इस पेड़ को देवताओं की पुष्प वाटिका में लगाया था। घर में तुलसी के पौधे के पास इस पौधे को लगाने से परिवार के सदस्यों के बीच बहुत सद्भाव व शांति बनी रहती हैं।

        इस सुगन्धित फूलों के पेड़ का औषधीय महत्व भी कम नहीं हैं। परिजात की पत्तियां के सेवन से अर्थराइटिस के कारण होने वाले दर्द में आराम मिलता हैं। साइटिका के दर्द को दूर करने के लिए वैद्य लोग इसके पत्तों का रस बीमार को पिलाते हैं। बुखार को दूर करने के लिए इसकी हर्बल टी बनाकर पिलाई जाती हैं। ब्लड शूगर को कम करने में इसके पत्तों का सेवन फायदा करता हैं। पाचन संस्थान को स्वस्थ करता हैं। इसके पत्तों का रस पुरानी खांसी को दूर करता हैं। अस्थमा और गैस की समस्या के लिए इसके फूलों का सेवन किया जाता हैं। डायबिटिज में  ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित करने में इसके फूलों का उपयोग होता हैं। इस प्रकार आयुर्वेद में यह कई रोगों में बहुत लाभकारी होता हैं।

        हरसिंगार का पौधा पूरे भारतवर्ष में आसानी से उगाया जा सकता हैं। भारत का तापमान, मिट्टी, पानी और प्रकाश इस पौधे के लिए अनुकूल हैं। पंचवटी (नासिक) में पाँच वृक्ष हरसिंगार के बहुत बड़े-बड़े देखे। वहाँ के लोगो का कहना है कि ये पेड़ माता सीता को बहुत पंसद था। इसलिए यहाँ लगाया गया।

        द्वापरयुग की कथा हैं कि श्री कृष्ण भगवान को रूकमणी जी ने कहा कि मुझे नारद मुनि ने ऐसा बताया हैं कि मेरे सभी रोगों की औषधि परिजात वृक्ष हैं। जो केवल इंद्र की वाटिका में ही उपलब्ध हैंं। आप जाइए और उनसे मांगकर लेकर आइए। कहते है कि कृष्ण भगवान इन्द्र के पास यह पेड़ लेने के लिए गए। लेकिन इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी ने पेड़ देने के लिये स्पष्ट मना कर दिया। कृष्ण भगवान के विनती करने पर भी इन्द्र ने परिजात देने से एकदम मना कर दिया। इधर कृष्ण भगवान के ऊपर रूकमणी का दबाव था तो उधर इन्द्र के ऊपर इन्द्राणी का दबाव था। कृष्ण और इन्द्र दोनां मजबूर थे। अततः इन्द्र और कृष्ण में परिजात के लिए युद्ध हुआ और भगवान कृष्ण उस परिजात के वृक्ष को जीतकर लेकर पृथ्वी पर वृक्षारोपण किया। यह कथा पौरोणिक काल में कहीं गयी हैं।

        हरसिंगार या परिजात का पौधा बहुत अधिक देखभाल नहीं मांगता हैं। इसका नया पौधा बीज से तैयार हो जाता हैंं। इस पौधे के बीज जब नीचे गिरते हैं तो बरसात की ऋतु में हरसिंगार के पेड़ के नीचे छोटे-छोटे पौधे अपने आप उगते हैं। इनको शिफ्ट करके आसानी से दूसरी जगह उगाये जा सकते हैं। अधिकतर वैद्य लोग इसके पत्तों व फूलों का औषधि में उपयोग करते हैं। गठिया, वातरोग, साइटिका, कमरदर्द आदि रोगों की यह रामबाण औषधि हैं। हर घर में एक हरसिंगार का पौधा जरूर लगाना चाहिए।

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