खौलता समुद्र बढ़ती चिंता
पर्यावरण के असंतुलन के कारण विश्व के तापमान में बढ़ोतरी होना खतरे का सूचक हैं। भूमण्डल पर तापमान बढ़ने से नई-नई बिमारियाँ आ रही हैं। लोगां का जीना मुश्किल हो रहा हैं। खाद्यान्न के उपज में कमी आ रही हैं। भविष्य में यह बहुत बड़ा संकट बनने वाला हैं। जलवायु परिवर्तन से अतिवृष्टि, अनावृष्टि, अल्पवृष्टि, असमान वृष्टि, केमिकलयुक्त रंगीन जल की वृष्टि आदि कई भंयकर परिवर्तन हो रहे हैं। परिणामस्वरूप मनुष्यों के साथ-साथ वन्यजीव एवं जंगल के लिए भी खतरा उत्पन्न हो रहा हैं।
भूमण्डल पर तीन
चौथाई जल है और एक चौथाई पृथ्वी हैं। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से समुद्री जल के
तापमान में भी भंयकर बढ़ोतरी हुई हैं। अमेरिका के फ्लोरिडा में समुद्र तट का पानी
का तापमान रिकॅार्ड 37.8 डिग्री सेल्सियस
तक पहुंच गया हैं। समुद्र का यह अब तक का वर्ल्ड रिकॉर्ड हैं। 2020 के एक स्टडी के अनुसार, सबसे गर्म समुद्री तापमान
का पिछला वर्ल्ड रिकॉर्ड कुवैत खाड़ी में 37.6 डिग्री सेल्सियस का था। समुद्री पानी का इतना गर्म होना
वहाँ के पौधों और जानवरों के लिए घातक हो सकता हैं। समुद्र के गर्म होने के पीछे
जुलाई से पड़ रही गर्मी को जिम्मेदार माना जा रहा हैं। जुलाई से अब तक सबसे गर्म
औसत वैश्विक तापमान का रिकॉर्ड बार-बार टूटा हैं। उत्तरी अटलांटिक में यूरोप के
कुछ हिस्सों में समुद्र के तापमान में साल के इस समय की तुलना में 7 डिग्री फारेनहाइट से
अधिक की वृद्धि देखी गई हैं।
समुद्री जल का
तापमान बढ़ते ही समुद्र में पनपने वाले पेड़-पौधों और समुद्र में रहने वाले
जीव-जन्तुओं का जीवन भी संकट में आ रहा हैं। बायोडायवर्सिटी अर्थात् जैव-विविधता
जो समुद्र पर निर्भर हैं वह नष्ट हो रही हैं। यदि जैव-विविधता नहीं बची तो मनुष्य
का अस्तित्व भी नहीं बचेगा।
विकसित राष्ट्रों
की सबसे बड़ी जिम्म्मेवारी वातावरण को दूषित होने से बचाने की हैं। क्योंकि वे सबके
बड़े भईया हैं। पर्यावरण बचाने के लिए उचित गाईड लाईन बनाना और उसे कठोरता के साथ
लागू करना सबका दायित्व हैं। इसके लिए विकासशील राष्ट्रों के आर्थिक, तकनीकी एवं वैज्ञानिक मदद
करना विकसित राष्ट्रों का दायित्व हैं।
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