लापता हो रही महिलायें : एक चिंता का विषय

        


 हमारे देश की जनसंख्या में पुरूष और महिलाओं के अनुपात में बहुत बड़ा असंतुलन हैं। इस कारण महिलाओं और लड़कियों की तस्करी व खरीद ब्रिकी जैसा घृणित कार्य प्रतिदिन हो रहा हैं।

               गृह मंत्रालय ने एन.सी.बी.आर.बी. की रिपोर्ट ‘‘क्राइम इन इंडिया‘‘ में बताया कि वर्ष 2020 में देशभर में 3,20,393 महिलायें और 71,204 लड़कियाँ गायब हुई हैं। 2021 के आंकडे़ इससे भी बढ़कर है 2021 में 3,07,558 महिलायें और 90,113 लड़कियाँ लापता हुई हैं। यह स्थिति किसी देश के लिए शर्मनाक हैं।

               सरकारी आंकड़ो के अनुसार 56,498 महिलायें महाराष्ट्र के पिछडे़ जिलों, 55,704 मध्यप्रदेश के आदिवासी जिलों एवं 29,582 ओडिशा के पश्चिमी भाग से गायब हुई हैं। भारत और नेपाल की सीमा पर तराई के इलाके से भी महिलाओं व लड़कियों की तस्करी बड़े पैमाने पर होती आई हैं जिनके आंकडे़ अभी उपलब्ध नहीं हैं।

        महिलाओं की तस्करी अनैतिक रूप से शादी कराने एवं अनैतिक वैश्यावृति के लिए की जाती हैं। बच्चों की तस्करी के आंकड़े भी उपरोक्त आंकड़ों से कम नहीं हैं। इनका उपयोग बाल श्रमिक के रूप में बडे पैमाने पर महानगरों में किया जाता हैं। छोटे बच्चों का उपयोग भिक्षावृति के लिए भी करना एक बहुत बड़ा उद्योग की तरह पनपा हुआ हैं।

               समाज के अन्दर फैली असमान आथि्र्ाक, सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति ही इस सारी समस्या की जननी है। समाज के हर वर्ग को इस समस्या पर चिंतन करने की नितांत आवश्यकता हैं। अमीरी-गरीबी की खाई को जितना हो सके पाटना चाहिए। शिक्षा के समान अवसर सबको उपलब्ध कराने होगे। भरपेट भोजन और स्वास्थ्य सुविधाएँ सबको समान रूप से मिले ऐसी नीतियों का निर्धारण ईमानदारीपूर्वक करना होगा। केन्द्र और राज्य सरकारों का पहला कर्तव्य होना चाहिए कि वांछित लोगों को समूचित रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ, भरपूर भोजन, सामाजिक सुरक्षा, ग्रामीण विकास, वन विकास जैसी योजनाओं का सीधा-सीधा लाभ उन वांछित लोगों को मिलना चाहिए, जिनका हक आज दिन तक मारा गया हैं। योजनाओं को लागू करने में पारदर्शिता एवं कठोरता अत्यंत आवश्यक हैं।

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