बाल तस्करी : एक अभिशाप
भारत में बाल तस्करी बड़े स्तर पर नियमित हो रही हैं। कोरोना काल के बाद इसमें काफी बढ़ोतरी हुई हैं। यह हमारे लिए कलंक हैं। हालांकि सरकार बच्चों को बालश्रम चंगुल से छुड़ाने के लिए कानून के अनुसार अपना प्रयास करती हैं। इस कार्य में लिप्त लोगों के लिए सजा के प्रावधान भी कड़े हैं फिर भी इससे मुक्ति नहीं मिल पा रही हैं। करीब-करीब सभी प्रांतो से बच्चों की तस्करी होती हैं। इन बच्चों का उपयोग खतरनाक उद्योगों में अधिक किया जाता हैं। 13 वर्ष से 18 वर्ष तक के बच्चे ज्यादातर उद्योगों में कार्य करते हैं। इसके अलावा ढ़ाबों में सभी काम चाइल्ड लेबर से ज्यादातर करवाये जाते हैं।
बड़े शहरों में छोटी-छोटी जगह से बच्चों को खरीदकर लाया जाता
हैं। इस काम में बड़े दलालों की गैंग काम करती हैं। नोबल पुरूस्कार विजेता श्री
कैलाश सत्यार्थी की ओर से स्थापित ‘‘कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाउन्डेशन‘‘ एवं
एन.जी.ओ. वेम्स की रिपोर्ट के अनुसार जो आंकडे़ पेश किये गये हैं। वह अत्यंत
खतरनाक हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 13 वर्ष से 18 वर्ष के 15 प्रतिशत बच्चे दुकानों ढ़ाबों और उद्योगों में काम करते
हैं। 13 प्रतिशत बच्चे
ओटोमोबाईल्स एवं ट्रांसपोर्ट सेक्टर में काम करते हैं। 12 प्रतिशत बच्चे कपड़ा और
रिटेल सेक्टर में काम करते हैं। विभिन्न संगठनों द्वारा पिछले सात साल में 13,549 बच्चों को बालश्रम और
टै्रेफिकिंग से मुक्त करवाया गया।
बच्चों की तस्करी रूक
नहीं पा रही हैं। जबरन शादी कराना, वैश्यावृति, भीख मंगवाना, बाल मजदूरी, अंग व्यापार और कभी-कभी आतंकी गतिविधियों में भी इनका उपयोग
किया जाता हैं। अशिक्षा, भूखमरी, गरीबी आदि बाल तस्करी के
मुख्य कारण हैं। बेरोजगारी भी इसमें सहायक होती हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास
कार्यक्रम के अनुसार भारत में बेरोजगारी की दर बहुत अधिक हैं और निरन्तर बढ़ती जा
रही हैं। कई बार माता-पिता अपना कर्ज चुकाने हेतु अपने बच्चों को तस्करों के हाथ
बेचने पर मजबूर हो जाते हैं।
बाल तस्करी को रोकने के
लिए कड़े कानून बने हुए हैं,
लेकिन इस कुकृत्य
को रोकने में कई चुनौतियाँ हैं। जैसे
जिम्मेवार एजेंसियों का समय पर एक्शन नहीं लेना, पुर्नवास की सुविधाओं का अभाव, अंधविश्वास एवं एकीकृत
निगरानी प्रणाली का अभाव। सरकारी कई नियम इसको रोकने के लिए बने हुए हैं उनका पालन
कड़ाई से नहीं हो पा रहा हैं।
जिन कारणों से बालकों की तस्करी हो रही हैं। यदि
उन कारणों को दूर कर दिया जायें तो बाल तस्करी पर अंकुश लगाया जा सकता हैं। जिन
-जिन राज्यों में जिन-जिन जिलों के और जिन-जिन समुदाय विशेष से बाल तस्करी होती
हैं उसके सभी आंकड़े ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद् स्तर पर उपलब्ध होने चाहिए। उन
आंकड़ो को आधार मानकर सबको शिक्षित करने का कार्यक्रम बडे़ पैमाने पर चलाना चाहिए।
हालांकि प्राथमिक शिक्षा सबको मिलें ये प्रयास राज्य सरकारें कर रही हैं। शिक्षा
के बाद रोजगार की व्यवस्था ऐसे समुदायों के लिए विशेष रूप से करनी होगी। सबको
भरपेट भोजन मिले, कोई भूखा नहीं
सोये ऐसी व्यवस्थायें राज्य सरकारें को केन्द्र के साथ मिलकर तुरन्त प्रभाव से
करनी होगी। स्वास्थ्य सेवाएँ सबको उच्च स्तर की एवं उचित समय पर लगातार मिलती
रहें। ऐसी व्यवस्था सरकारें कर तो रही हैंं लेकिन और तेज गति से काम करने की
आवश्यकता हैं। ऐसे चयनित वर्गो में सुरक्षा की भावना बनी रहनी चाहिए। इस प्रकार
शिक्षा, रोजगार,
भरपेट भोजन, स्वास्थ्य सेवाएँ और सामाजिक असमानता व सामाजिक सुरक्षा इस
वर्ग को ईमानदारीपूर्वक मिले तो बाल तस्करी को काफी हद तक रोका जा सकता हैं। माथे
पर लगा यह कलंक का टीका मिट सकता हैं।
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