लिव इन रिलेशनशिप : बर्बादी के लक्षण
युवक-युवतियों के बीच बढ़ते रिलेशनशिप को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गहरी चिंता जताई हैं। एक लड़की को आत्महत्या के लिए उकसाने से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा ने कहा कि विपरीत लिंग के साथ मुक्त संबंध के लालच में देश का युवा जीवन बर्बाद कर रहा हैं। पश्चिमी संस्कृति के अनुकरण से वास्तविक जीवनसाथी नहीं मिल पा रहा हैं। कोर्ट ने पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण और संचार माध्यमों से हो रहे सामाजिक बदलावों को लेकर गहरी चिंता भी जताते हुए कहा कि इस देश के युवा को सोशल मीडिया, फिल्मां और टीवी धारावाहिकों ने दिखाई हैं। जस्टिस वर्मा ने कहा कि सोशल मीडिया, फिल्म, टीवी धारावाहिक और वेब सीरीज के प्रभाव में देश का युवा न अपने जीवन का लक्ष्य तय कर पाता हैं और न ही भविष्य के लिए सही फैसला ले पाता हैं। सही साथी की तलाश में वे अक्सर गलत साथी की संगति में पहुंच जाते हैं। सोशल मीडिया, फिल्मों में कई सारे अफेयर और धोखा दिखाना आम हो गया हैं।
भारतीय संस्कृति और
सभ्यता में हमारे सामाजिक नियमों की व्याख्या सुचारू रूप से की गयी हैं। इनसे हटकर
यदि हम चलेंगे तो सामाजिक ताना-बाना बिखर जायेगा। यही चिंता माननीय इलाहाबाद
हाईकोर्ट के जज ने अपने फैसले में प्रकट की हैं। अब भी अगर हम सही रास्ते पर नहीं
आये तो हमें बर्बाद होने से कोई नहीं रोक सकता। युवाओ में बढ़ता डिप्रेशन, मानसिक अवसाद यहाँ तक कि आत्महत्या का कारण भी
फ्री रिलेशनशिप हैं। युवाओं को और उनके माता-पिता को सचेत होना पड़ेगा। इसके दुःखद
परिणाम प्रतिदिन समाज में देखे जा सकते हैं। विशेषकर पढ़े-लिखे युवाओं में।
आदिवासी जातियों में लिव-इन रिलेशनशिप की प्रथा
आदिकाल से चली आ रही हैं। उनमें भी कई बार विघटन होता हैं। कई बार तो इतनी बुरी
हालत हो जाती हैं, कि चार-पाँच
बच्चों के माँ-बाप भी अलग-अलग रहने लग जाते हैं। लेकिन उनमें कभी डिप्रेशन,
अवसाद या मानसिक बिमारी नजदीक भी नहीं भटकती
हैं। उनके समाज में इतनी अधिक सहिष्णुता हैं कि पढ़े-लिखे युवाओं को उन अनपढ़
आदिवासीयां से शिक्षा लेनी चाहिए। आदिवासीयां की जीवन पद्धति में किसी भी प्रकार
की बुराई आज भी नहीं देखी जा सकती। वे अपना जीवन अत्यंत ईमानदारी के साथ जीते हैं।
यही कारण है कि वे हर परिस्थिति में आनंदित रहते हैं।
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