स्वास्तिक



      
 
 स्वास्तिक अत्यंत प्राचीनकाल से भारतीय संस्कृति में मंगल प्रतीक माना जाता रहा हैं। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वास्तिक चिन्ह् अंकित करके उसका पूजन किया जाता हैं। स्वास्तिक शब्द सु$अस$क से बना हैं। सु का अर्थ अच्छा, ‘अस‘ का अर्थ सता या ‘अस्तित्व‘ और ‘क‘ का अर्थ कर्ता या करने वाले से हैं।

        स्वास्तिक का अर्थ होता हैं-कल्याण या मंगल, इसी प्रकार स्वास्तिक का अर्थ होता हैं-कल्याण या मंगल करने वाला स्वास्तिक एक विशेष तरह की आकृति होती हैं, जिसे किसी कार्य को करने से पहले बनाया जाता हैं, माना जाता है कि यह चारों दिशाओं से शुभ और मंगल चीजों को अपनी तरफ आकर्षित करता हैं। चूंकि स्वास्तिक को कार्य की शुरूआत और मंगल कार्य में रखते हैं, अतः यह भगवान गणेश का रूप भी माना जाता हैं। माना जाता हैं कि इसका प्रयोग करने से व्यक्ति को सम्पन्नता, समृद्धि और एकाग्रता की प्राप्ति होती हैं। इतना की नहीं जिस किसी पूजा उपसना में स्वास्तिक का प्रयोग नहीं किया जाता, वह पूजा लम्बे समय तक अपना प्रभाव नहीं रख पाती।

        स्वास्तिक सही तरीके से बनाया हुआ हैं तो उसमें से ढेर सारी सकारात्मक ऊर्जा निकलती हैं, यह ऊर्जा वस्तु या व्यक्ति की रक्षा, सुरक्षा करने में मददगार होती हैं। स्वास्तिक की ऊर्जा का अगर घर, अस्पताल या दैनिक जीवन में प्रयोग किया जाये तो व्यक्ति रोगमुक्त और चिंतामुक्त रह सकता हैं। गलत तरीके से प्रयोग किया गया स्वास्तिक भयंकर समस्याएँ भी पैदा कर सकता हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी के हिटलर की फौज मित्र देशों की फौज के ऊपर भारी पड़ रही थी। हिटलर की फौज का निशान भी स्वास्तिक ही था। लेकिन वह स्वास्तिक तिरछा और उल्टा था। इसी वजह से उस युद्ध में हिटलर बुरी तरह से पराजित हुआ।

        स्वास्तिक की रेखाएँ और कोण बिल्कुल सही होने चाहिए। भूलकर भी उल्टे स्वास्तिक का निर्माण और प्रयोग न करे लाल और पीले रंग के स्वास्तिक ही सर्वश्रेष्ठ होते हैं। जहाँ-जहाँ वास्तुदोष हो वहाँ के मुख्य द्वार पर लालरंग का स्वास्तिक बनाये पूजा के स्थान, पढ़ाई के स्थान और वाहन में अपने सामने स्वास्तिक बनाने से लाभ मिलता हैं। लाल रंग व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्तर को जल्दी प्रभावित करता हैं। यह रंग शक्ति का प्रतीक माना जाता हैं। सौरमण्डल में मौजूद ग्रहों में से मंगल ग्रह का रंग भी लाल हैं। यह एक ऐसा ग्रह हैं। जिसे साहस, पराक्रम, बल व शक्ति के लिए जाना जाता हैं। यही वजह है कि स्वास्तिक बनाते समय सिर्फ लाल रंग का ही उपयोग करने की सलाह दी जाती हैं।

        हिन्दू धर्म में स्वास्तिक चिन्ह का बहुत अधिक महत्व हैं। किसी भी मांगलिक एवं शुभ कार्य को करने से पूर्व देहरी या पूजा-स्थल पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाया जाता हैं। भारतीय परंपरा में स्वास्तिक सदियों से उपयोग किया जाता रहा हैं। हमारे देश में सनातन धर्म के अतिरिक्त बौद्धो और जैन धर्म के अनुयायियों के मध्य भी इस प्रतीक का अत्यंत महत्व हैं। ऐसे में इस चिन्ह का अर्थ, इसकी मान्यता, इतिहास और इस प्रतीक का महत्व जानना आवश्यक हैं।

        हिन्दू धर्म में स्वास्तिक को अत्यंत पवित्र एवं कल्याणकारी माना जाता हैं। हिन्दू-धर्म में इस प्रतीक का उपयोग सबसे व्यापक और वृहद रूप से किया गया हैं और यहाँ विभिन्न मांगलिक और शुभ-कार्यों के शुरूआत में स्वास्तिक का प्रतीक बनाने की प्रथा प्रचलित हैं। हिन्दू-धर्म में विभिन्न मान्यताओं के अनुसार इस प्रतीक का निम्न अर्थ हैं,स्वास्तिक की चार भुजाएँ होती हैं जो कि चार-दिशाओं को इंगित करती हैं। मान्यता हैं कि इसकी चार भुजाये चारों दिशाओं से शुभ तथा मंगल को आकर्षित करती हैं और सभी कार्य निर्विघ्न सत्पन्न होते हैं। यही कारण है की सभी शुभ कार्यो से पूर्व स्वास्तिक का प्रतीक बनाकर शुभ और मंगल को आकर्षित किया जाता हैं।

        स्वास्तिक को हिन्दू धर्म में प्रचलित सबसे महत्वपूर्ण चार वेदों का प्रतीक भी माना जाता हैं।स्वास्तिक को सनातन धर्म में ब्रह्या के चार मुखों का प्रतीक भी माना गया हैं।हिन्दू धर्म में स्वास्तिक को चार देवो-ब्रह्या, विष्णु, महेश और गणेश का प्रतीक भी माना गया हैं।

Comments

Popular posts from this blog

जल संरक्षण की जीवंत परिपाटी

बाजरी का धमाका: जी-20 सम्मेलन मे

लुप्त होती महत्त्वपूर्ण पागी कला