गीता माधुर्य
16 जुलाई 1945 को जापान में हिरोसीमा व नागासाकी पर परमाणु बम गिराये गये। जिससे दो लाख से ज्यादा लोग मारे गये। परमाणु बम के आविष्कार जनक और अमेरिकी भौतिक वैज्ञानिक जै. राबर्ट ओपेनहाइमर ने अपने आविष्कार से दुनिया को विध्वंस हेते देखा। हालांकि उनको आंशका थी कि इससे कितना बड़ा सृष्टि का विनाश होगा जो अकल्पनीय होगा। परमाणु बम के विस्फोट के बाद उनके मन में पीड़ा और दर्द रहने लगा। इस पीड़ा से ओपेनहाइमर इतने दुखी हो गये कि उनका सारा चैन खत्म हो गया। वे हमेशा अनमने से रहने लगे।
इस विकट मानसिक स्थिति से
उभरने का उनके पास कोई साधन नहीं था। कुछ समय बाद एक भारतीय योगी से सम्पर्क हुआ।
उन्होने अपनी मनःस्थिति को योगी के सामने प्रकट की। योगी को समझने में देर नहीं
लगी। उन्होनें अपनी झोली में से एक पुस्तक निकाल कर ओपेनहाइमर के हाथ में थमाई और
कहा कि यह दवाई तुम्हारा इलाज हैं। पुस्तक और कोई नहीं श्रीमद्भगवत्गीता थी।
लेकिन वह मूल भाषा संस्कृत में लिखी हुई थी। योगी जी ने गीता के कुछ श्लोकों का
अंग्रेजी में अनुवाद करके उन्हे बताया। ओपेनहाइमर खुशी से उछल पडे़। उन्हे अपना
उतर मिल चुका था। उन्होने श्रीमद्भगवत्गीता को पढ़ने के लिये के लिए संस्कृत सीखी।
वे गीता से इतने प्रभावित थे कि हर समय गीता अपने पास रखते थे और जो भी दोस्त
मिलता था उसको भी इसे पढ़ने की सलाह देते थे। गीता के मुख्य-मुख्य श्लोक उनको
कंठस्थ हो गये थे।
अमेरिकी इतिहासकार जैम्स
ए हीजिया ने अपने पेपर ’’द गीता ऑफ जै राबर्ट ओपेनहाइमर’’ में लिखा हैं कि गीता का
इस्तेमाल मन की पीड़ा के लिए दर्द निवारक के रूप में किया था। वे विनाशकारी खोज के
पश्चाताप में अपराध बोध से परे रखने के लिए गीता का उल्लेख करते थे। जिसमें श्री
कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि यदि अधर्म के रास्ते पर हैं तो सगें सम्बन्धियों पर
अस्त्र उठाना अनुचित नहीं है। जर्मन और जापानियों को मारना इसलिए अनुचित नहीं है।
क्योंकि यहाँ की सरकारें दुनियां को जीतने की कोशिशे कर रही थी। ये उनकी
विस्तारवादी नीति थी।
श्रीमद्भगवद्गीता का अनुवाद विश्व की सभी भाषाओं में हुआ है। दुनिया के सभी
धार्मिक ग्रंथों में जितनी अधिक टिकायें श्रीमद्भगवद्गीता की हुई हैंं। शायद किसी
ग्रंथ की नहीं हुई। अन्तर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ, के संस्थापकाचार्यः श्री श्रीमद् ए.सी.भक्विदान्त स्वामी
प्रभुपाद ने ‘‘श्रीमद्भगवद्गीता एज इट इज‘‘ पुस्तक की करोड़ों प्रतियाँ छपवाकर विश्व
की अलग-अलग भाषाओं में अनुवादित करवाया और घर-घर तक पहुँचाने का प्रयास किया। उसी
प्रकार भारत में गीता प्रेस गोरखपुर ने श्रीमद् भगवद् गीता के संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी एवं अन्य सभी भारतीय भाषाओं में प्रकाशित करके बहुत कम कीमत पर
करोड़ों प्रतियां उपलब्ध करवायी। इस पुनीत कार्य के लिये भारत सरकार ने गीता प्रेस
गोरखपुर को वर्ष 2022 का गांधी शांति
पुरस्कार से सम्मानित किया। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने स्वंय
गोरखपुर जाकर यह पुरस्कार अपने हाथों से दिया।
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