ऑर्गेनिक भोजन उपलब्ध हो सकता हैं।


 आजकल ऑर्गेनिक भोजन हर व्यक्ति करना चाहता हैं। लेकिन हमारे भोजन सामग्री में रासायनिक जहर इतना घुल मिल गया हैं कि ऑर्गेनिक वस्तुएँ मिलना मुश्किल काम हो रहा हैं। अनाज, दालें, सब्जियाँ और फल जहाँ भी पैदा होती हैं, रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का प्रयोग होता ही हैं। ऐसी परिस्थिति में ऑर्गेनिक भोज्य पदार्थ मिलना एक मुश्किल काम हैं, लेकिन दुष्कर नहीं हैं।

                              आज आपसे में बात करना चाहता हूँ कि आपको ऑर्गेनिक अनाज, दालें और सब्जियाँ कैसे उपलब्ध हो सकती हैं। भारत के किसान जिनके पास केवल वर्षा आधारित खेती होती हैं, सिंचाई का कोई साधन उपलब्ध नहीं हैं, वे किसान अपने खेतों में केमिकल, फर्टीलाईजर का उपयोग करते ही नहीं हैं। असिंचित फसलों में रोग प्रतिरोधक क्षमता गजब की होती हैं। अतः उन्हें पेस्टिसाईड की भी आवश्यकता नहीं होती हैं। सौभाग्य से अभी भी हमारे देश के हर प्रांत में ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहाँ असिंचित फसलों की खेती की जाती हैं। यह वर्षा आधारित खेती पीढ़ियों से हजारों वर्षो से करते आ रहे हैं। अपनी भोजन की आपूर्ति के लिए किसान इन फसलों की खेती करता आ रहा हैं, जो पूर्णरूप से ऑर्गेनिक होती थी और होती हैं।

 राजस्थान की बात करें तो वहां कई जगह आज भी टिकाऊ, प्राकृतिक एवं जैविक खेती वर्षा आधारित की जाती हैं। ये फसलें जून-जुलाई में बोई जाती हैं। निराई-गुड़ाई समय आने पर की जाती हैं। उसके बाद हार्वेसि्ंटग सितम्बर से नवम्बर तक की जाती हैं। ये फसलें पूर्णरूप से ऑर्गेनिक ही होती हैं। खाद्यान्न के लिए बाजरी और ज्वार मुख्यतः बोया जाता हैं। इसकी फसल सितम्बर से अक्टूबर तक तैयार हो जाती हैं। पहले वर्षपर्यन्त किसान यही अनाज खाते थे और दो-तीन वर्ष का अनाज स्टोर भी रखते थे। जो अकाल या अनावृष्टि में काम आता था।

                              इस प्रकार ऑर्गेनिक अनाज के मामले में आज भी किसान आत्मनिर्भर हैं। ऐसे किसानों से सम्पर्क करके अपनी आवश्यकतानुसार ऑर्गेनिक मोटे अनाज अर्थात् मिलेट्स खरीद कर रख सकते हैं। ऑर्गेनिक दालों के लिए भी किसान आत्मनिर्भर होता था। खरीफ की फसल में मुख्यतः मूंग, मोठ, चावल, कुलथी आदि दलहनी फसलें जुलाई में बोई जाती हैं और दीपावली पर काट ली जाती हैं। कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं, जहाँ बरसात में पानी भर जाता हैं। धीरे-धीरे पानी सुखने पर उसमें गेहूँ, जौ, चना, मसूर, सरसों आदि बोये जाते हैं। इन फसलों को सितम्बर में बो कर फरवरी में हार्वेस्ट किया जाता हैं। इनको यहाँ पर सेवज की खेती कहते हैं। इनमें भी किसी प्रकार के रासायनिक खादों का प्रयोग होता ही नहीं हैं। खरीफ में तिल बोया जाता हैं और रबी में सेवज में सरसों बोया जाता हैं। इन दोनों तिलहनी फसलों में कोई कैमिकल फर्टीलाईजर उपयोग में नहीं लिया जाता हैं।

                              अब आप देख रहे है कि बाजरा, ज्वार, गेहूँ और जौ खाद्यान्न आपको 100 प्रतिशत ऑर्गेनिक बड़े आसानी से मिल सकते हैं। दालों में मूंग, मोठ, चवला, कुलथी और सेवज का मसूर, चना भी आर्गेनिक  उपलब्ध हो रहा हैं। रही बात सब्जियों की जिन खेतों में ऑर्गेनिक अनाज और दालें पैदा हो रही हैं। उनमें ग्वारफली, काचरा, मतीरा, टिण्डा आदि बहुतायत से होता हैं। दीपावली तक तो ये सब्जियाँ ताजी प्रचूर मात्रा में मिलती हैं, जो 100 प्रतिशत ऑर्गेनिक होती हैं। इसके अलावा खेत की मेड़ पर जंगली करेला खूब लगता हैं। जिसे कंकेड़ा बोलते हैं। यह सब्जी भी बहुत पौष्टिक होती हैं। जो खेतों में वृक्ष प्रजातियों के पेड़ खड़े हैं। जैसेः- खेजड़ी, कुमटिया, केर, गुंदा इनसे भी बहुमुल्य पोषक सब्जियाँ जैसेः- सांगरी, केर, कुमटिया, फोगला, गूंदा आदि मिलते रहते हैं। कुछ किसानों ने सहजन के पेड़ भी लगाये हैं। इनकी फलीया भी 100 प्रतिशत ऑर्गेनिक मिलती रहती हैं।

   इस प्रकार अनाज, दलहन, तिलहन व सब्जियाँ असिंचित क्षेत्र में किसान ऑर्गेनिक पैदा कर रहे हैं। उपभोक्ताओं को इनका प्रोक्योरमेन्ट व डिस्ट्रीब्यूशन का नेटवर्क बनाना पडेगा। इसमें कुछ लोगों को ऑरगेनिक का रोजगार भी मिल जायेगा व सस्ते में भोजन सामाग्री भी ऑर्गेनिक नियमित रूप से मिल जायेगी।

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