दक्षता किसी की बपौती नहीं होती
यह सच्ची घटना तीन आदिवासी बहनों की हैं, जो गुजरात के अम्बा जी के आस-पास की पहाड़ियों में रहती हैं। आदिवासी परिवार गरासिया से सम्बन्ध रखने वाली ये तीनां लड़कियाँ मार्केटिंग के काम में इतनी निर्पूण हैं कि एम.बी.ए. को भी पीछे रख रही हैं। उनके खेतों में लौकी का बीज बोया जाता हैं। फल लगने पर रोज 20-20 लौकी की तीन गठरियां बना कर अम्बा जी में मार्केट में बेचने के लिए आ जाती थी। उनकी मार्केटिगं की स्टाइल गजब की थी।
तीनों लड़कियाँ अपनी-अपनी गठरी खोलकर 20-30 फूट की दूरी पर
बैठती थी। एक लड़की आवाज लगाती थी। पच्चीस रूपये की एक लौकी, दूसरी लड़की आवाज
लगाती थी बीस रूपये की एक लौकी और तीसरी लड़की आवाज लगाती है कि बीस रूपये की दो लौकी।
तीनों लड़कियाँ काफी तेज आवाज में बोलकर लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती थी। वास्तव
में तो उन्हे बीस की दो लौकी ही बेचनी थी। लेकिन सबसे छोटी वाली की सेल जल्दी हो जायें
अतः वह उत्तरोत्तर ज्यादा भाव रखती थी।
स्वाभाविक हैं बीस रूपये की दो लौकी का माल सबसे जल्दी बिक जायेगा। माल
बिकते ही दूसरी लड़कियाँ भी दस-दस लौकी उसको दे देती थी। आवाज लगाने का सिलसिला चालू
रहता था। इस प्रकार क्रमशः बीस रूपये की दो लौकी के हिसाब से सारा माल एक-दो घंटे में
बिक जाता था। साठ लौकी बेचकर वह छःह सौ रूपये बना लेती थी। उनको बराबर-बराबर बाँटकर
स्कूल चली जाती थी।
यह सिलसिला उनका वर्ष पर्यन्त चलता था। उनके माता-पिता अलग-अलग सीजन में
अलग-अलग चीजों की खेती करते थे। मुख्यतः उस क्षेत्र में बिना लागत के होने वाली मक्का,
बालम
काकड़ी, लौकी, कद्दू, देशी बैंगन (हरे रंग का कांटा वाला) भिंडीं आदि। यह सारी खेती सौ प्रतिशत
ऑर्गेनिक ही होती हैं। इन बहनों ने भी ऑर्गेनिक शब्द अच्छी तरह से सीख लिया था। अतः
जब भी आवाज लगाती उसमें ऑर्गेनिक शब्द जोड़ती रहती थी। इन फसलों में रासायनिक खाद या
कीटनाशकों का प्रयोग बिल्कुल नहीं करते हैं। सारी सब्जियाँ नग के आधार पर बेची जाती
हैं। उनके पास कोई बाट या तराजू नहीं होता हैं। भिंडीं, बैंगन जैसी सब्जियाँ
अंदाज से 400 ग्राम की पोटली अरण्डी के पतों में बाँधकर ही लाती थी और प्रति पोटली
का एक भाव रखती थी। कम से कम लागत की खेती, रो़ड़ साईड बेचने
के कारण दुकान का भाड़ा नहीं, कोई कर्मचारी नहीं, और कोई पूंजी का इंवेस्टमेंट नहीं। इस प्रकार का नगद व्यापार
प्रतिदिन दो घंटे करके वे तीनों बहनें 600-800 रू. कमाकर ले जाती
हैं। इस प्रकार का हुनर इन आदिवासी लड़कियों ने अपनाया कि बडे़-बड़े दुकानदार भी उनकी
स्टाइल के आगे कुछ नहीं हैं। स्किल या दक्षता किसी की बपौती नहीं होती। मेहनत करने
वाला कोई भी एकलव्य बन सकता हैं।
Very intelligent people .
ReplyDeleteReally excellent example of competitive marketing
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