ऑर्गेनिक जीवन पद्वति : एक अच्छी शुरूआत
नेशनल हाईवे नं. 2 पर वाराणसी के पास ग्रामीण क्षेत्र में एक अनोखा ऑर्गेनिक ढ़ाबा हैं। इस ढ़ाबे का संचालन दो बहनें करती हैं। यह ढ़ाबा ग्रामीण लुक देता हुआ बनाया गया हैं। डायनिंग हॉल, किचन, रिसेप्शन आदि को देखने से मालूम होता हैं कि यह डिजाइन 60-70 वर्ष पुरानी हैं। अन्दर पहुँचते ही छोटा कुआँ, बाल्टी और रस्सी हाथ-पैर धोने की चौकी आदि की व्यवस्था की गयी हैं। हाथ-पैर धोकर ही डायनिंग हॉल में प्रवेश किया जा सकता हैं। पंगत में बैठकर पाटे के ऊपर कांसी की थालियों में भोजन परोसा जाता हैं। ज्ञातव्य हो कि इस ढ़ाबे में भोजन बनाने, परोसने व रिसेप्शन का सारा काम लड़कियाँ ही करती हैं। इतना ही नहीं अनाज, दालें, सब्जियाँ, फल, मसाले आदि भी आस-पास के गाँव नैपुरा, तारापुर टिकरी, मूराडीह आदि की महिलायें जैविक खाद के द्वारा ऑर्गेनिक रूप से उत्पादन करके इस ढ़ाबे में पहुँचाती हैं। खाना सर्व करने वाली प्रतिभा और प्रियंका काम के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी कर रही हैं। इस ढ़ाबे में अभी 60 महिलायें कार्यरत हैं। इस ढ़ाबे में काम आने वाले आटा व मसालें की पिसाई भी यहाँ की महिलायें पुराने तरीको से करती रहती हैं। दूर-दूर से लोग इस ढ़ाबे में खाना खाने के लिए आते हैं। यहाँ का स्वादिष्ट और स्वास्थ्यप्रद भोजन सस्ता भी पड़ रहा हैं। लोग इसे बड़ चाव से खाते हैं।
यह उदाहरण पूरे देश के
लिए आईओपनर हैं। इस प्रकार के प्रोजेक्ट हर क्षेत्र में खोले जाने की अपार संम्भावनाएँ
हैं। बड़े शहर से हटकर रोड़ के किनारे जहाँ लोगो का आवागमन ज्यादा होता हो वहाँ इस प्रकार
के ढ़ाबे व स्टोर चलाने की पूरी संम्भावनाएँ हैं। इस प्रकार के प्रोजेक्ट को अपने-अपने
क्षेत्र में प्रोत्साहित करना चाहिए। इतना ही नहीं इसके साथ-साथ छोटा-मोटा ऑर्गेनिक
फूड स्टोर का भी संचालन किया जा सकता हैं। जिसमें स्थानीय रूप से पैदा होने वाली उपज
को क्लिनिंग, र्सोटिगं व पेकिंग करके भी लोगो को उपलब्ध कराया जा सकता हैं। ऑर्गेनिक
अनाजों में गेहूँ, जौ, बाजरा, रागी, ज्वार, चना आदि इनके हाथ की चक्की से
पीसे हुए आटे बिक्री के लिए रख सकते हैं। हाथ से कूटे-पीटे ऑर्गेनिक मसाले जैसेः- हल्दी, धनिया, मिर्ची
की भी पैकिंग करके बेचा जा सकता हैं। ऑर्गेनिक खडे़ मसालें जीरा, राई, पीली
सरसों, मेथी, कलांजी, तिल, अजवाइन, अलसी
आदि के भी पाऊच रख सकते हैं। इसके अलावा हाथ से बने हुए उत्पाद पापड़, मंगोड़ी, राबोड़ी, खीचिया, आटे
के नूडल्स आदि भी कुटीर उद्योग में बनाकर बिक्री के लिए रख सकते हैं। उसी प्रागंण में
बैल वाली घाणी लगाकर ऑर्गेनिक तिली व सरसों का तेल भी निकालकर बेच सकते हैं। ऑर्गेनिक
दालों में मूंग, मोठ, चना, उड़द, मसूर की दालें भी वही दलकर पैक करके बेच सकते हैं। स्थानीय स्तर पर पैदा
होने वाले सीजनल ऑर्गेनिक फल व सब्जियाँ भी खूब बिकेगी।
मल्टीग्रेन
आटा भी हाथ की चक्की का पीसा हुआ बहुत बिकेगा जो मधुमेह, हदय
रोग व कैंसर रोधी बिमारियों में खाया जाता हैं। हाथ के बिलौना की ताजी छाछ व मक्खन
की भी मांग रहती हैं। घर के बने हुए आंवला, मिर्ची, आम, नींबू, कैर, सांगरी, कुमटिया, गुंदा
आदि के आचार के साथ-साथ सर्दियों में बनने वाले गोभी, गाजर, अदरक
का मिक्स आचार भी लोगों को पसंद आता हैं। तरह-तरह की चटनियाँ बना कर भी बोतल या जार
में पैक करके बेच सकते हैं जैसेंः- लहसुन की चटनी, हरा धनिया की चटनी, पोदीना
की चटनी आदि। विशेष त्यौहारों पर विशेष ऑर्गेनिक व ट्रेडिशनल मिठाईयाँ व पकवान भी बनाकर
बेच सकते हैं। डिमाण्ड और सप्लाई के आधार पर आईटम कम ज्यादा किये जा सकते हैं। ऐसे
कई ऑर्गेनिक स्टोर्स भारत में जगह-जगह पर अच्छा काम कर रहे हैं। बैंगलूरू व मैसूर के
बीच में ऐसा ही बहुत बड़ा स्टोर एम.बी.ए. किये हुए लोग सफलतापूर्वक चला रहे हैं। जिनका
टर्न ओवर करोड़ों रूपयों का हैं।
इन सब चीजों का प्रस्तुतिकरण
बहुत सुन्दर होना चाहिए। पूरे काम में पारदर्शिता आवश्यक हैं। रेस्टोरेन्ट, स्टोर
और प्रोसेसिंग व ऑर्गेनिक खेतों में काम करने वाले सभी लोग पूर्ण रूप से ऑर्गेनिक के
बारे में जागरूक और प्रशिक्षित होने चाहिए। स्वच्छता, अच्छी
पैकजिंग, ट्रान्सपेरेन्सी, ईमानदारी और मधूर व्यवहार इस ऑर्गेनिक व्यापार
को आसमान की ऊँचाई तक ले जायेगा। ऑर्गेनिक सेक्टर में काम करने से रोजगार के नये-नये
अवसर ग्रामीण युवाओं को मिलेगें। उनका जीवन स्तर ऊँचा उठेगा। साथ ही ऑर्गेनिक भोजन
करने वाले का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। इन संम्भावनाओं को कार्यरूप में बदलना आवश्यक हैं।
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