जनसंख्या के अनुपातों का असंतुलन - एक चितांजनक स्थिति
दक्षिण कोरिया में छोटे बच्चों की शरारतों को देखकर वहाँ के कई जगहों पर उनका प्रवेश बंद कर दिया गया था। ऐसे प्रतिबन्धित क्षेत्रो को ‘‘नो किड्स जोन‘‘ कहते हैं। वहाँ के माता-पिता ने भी इस प्रकार के प्रतिबन्ध को तेजी से स्वीकार किया। इसके दुष्परिणाम अब देखने को मिल रहे है कि कोरिया में सबसे कम जन्मदर हो गई हैं। दक्षिण कोरिया में युवाओं की कमी आ गयी। बुजुर्गो की संख्या बढ़ गई। जिससे देश का आयुवर्ग के अनुसार औसत गड़बड़ा गया। सरकार बहुत जल्दी चेत गई। वहाँ की सरकार महिलाआें को अधिक बच्चों वाली माँ बनने के लिए 16 वर्षो में 16 लाख करोड़ रूपयें खर्च कर चुकी हैं। ज्ञातव्य हो कि दक्षिण कोरिया में माता को 2 से अधिक बच्चें नही होने की भी गाइडलाइन हैं।
राजस्थान के जैसलमेर जिले में ऐसी प्रथा थी कि
लड़का पैदा होने पर खुशी मनाई जाती थी। इसके विपरीत यदि लड़की पैदा हो गई, तो उसे पैदा होते ही मार दिया जाता था। पता
नहीं ये प्रथा कितने सौ साल पुरानी थी। आज तो इसका नामोनिंशान भी नहीं हैं। लेकिन
फिर भी राजस्थान में स्त्री-पुरूष का अनुपात
बिगड़ा हुआ हैं। केवल राजस्थान ही नहीं, समीप के हरियाणा और पंजाब में भी पुरूषों के अपेक्षा
स्त्रीयों की कमी हैं। किसी भी सामाजिक नियम या कुप्रथा का लम्बे समय तक
दुष्प्रभाव राष्ट्र को झेलना पड़ता हैं।
जापान, चीन, दक्षिण कोरिया की
तरह यूरोप के भी कई देशां में स्त्री-पुरूष के अनुपात का असंतुलन बढ़ गया हैं। इन
राष्ट्रों में युवाओं की कमी आ रही हैं, काम करने के लिए वर्कफोर्स का अभाव हो रहा हैं, राष्ट्रीय उत्पादन घट रहा हैं, मानव श्रम हेतु
दूसरे देशां पर निर्भर रहना पड़ रहा हैं। देश में स्त्री-पुरूष अनुपात एवं आयुवर्ग
अनुपात में यदि असंतुलन होगा तो उस राष्ट्र का सर्वांगीण विकास रूक जायेगा।
राष्ट्र के समाजशास्त्रियों, नीति निर्धारकों एवम्ं प्लानिंगकमीशन की यह
प्रथम जिम्मेवारी है कि राष्ट्र के सभी प्रकार के अनुपातों का संतुलन बना रहे।
Demographic imbalances are fatal
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