विश्व में बढ़ता हुआ खाद्यान्न संकट

 




कृषि वैज्ञानिकों का मत है कि विश्व की बढ़ती जनसंख्या और बिगड़ते पर्यावरण के दुष्प्रभाव से वैश्विक खाद्यान्न संकट निकट भविष्य में दिखाई देगा। चीन के सरकारी अखबार इकोनोमिक डेली के पास देश की आवश्यकता का मात्र 18 महीने का गेहूँ और चावल का भण्डार हैं। इस समस्या के कारण चीन में खेती की जमीन का सिकुडना और शहरीकरण की तेज गति के कारण जमीन का बड़ा हिस्सा बेकार हो चुका हैं। कुछ हिस्सों में सिंचाई के लिए पानी के असमान वितरण से सूखे का खतरा बना हुआ हैं। यूक्रेन युद्ध से गेहूँ और फर्टीलाइजर मिलना मुश्किल हो रहा हैं। चीन के इतिहास में अकाल और खाद्यान्न की कमी के कारण कई राजवंशों को सिंहासन गवांना पड़ा था।

               चीन की सरकार ने इस बात पर जोर दिया है कि खाद्यान्न की खेती के लिए 12 करोड़ हैक्टेयर जमीन को किसी भी कीमत पर बनायें रखना हैं। इसके लिए चीन के द्वारा विभिन्न देशां में खेती की जमीन खरीदी जा रही हैं। वैसे चीन सबसे बड़ा गेहूँ का उत्पादक देश हैं, लेकिन खपत भी सबसे ज्यादा हैं। चीन यदि फूड सिक्योरिटी पर जोर देता हैं तो इसका असर पूरी दुनिया पर पडे़गा।

        दक्षिण चीन में भीषण गर्मी के कारण धान के खेतों में बड़ें पैमाने पर मछलियों की मौत हुई हैं। नानटांग शहर में पिंग फार्म में हजारों सुअरों ने गर्मी से दम तोड़ दिया हैं। सारे चीन में अन्य देशां के मुकाबले फूड की कीमतें कम बढी़ हैं फिर भी वहाँ के अधिकारी चिंतित हैं। लगभग ऐसी ही खतरनाक या इससे भी खतरनाक परिस्थितियाँ पूरे विश्व में निर्मित हो रही हैं। खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ाना और जितना खाद्यान्न उपयुक्त हैं उसका सही ढंग से वितरण करना हर सरकार का दायित्व हैं। युद्ध के बादल मंडराते रहेगें। ग्लोबल वार्मिंग भी बढ़ेगी। अनावृष्टि और अतिवृष्टि भी बढ़ेगी। इन सब खतरों के होते हुए भी हमें खाद्यान्न सुरक्षा का गंभीरता से ध्यान रखना हैं।        

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