ध्वनि प्रदूषण
किसी भी प्रकार के अनुपयोगी ध्वनियों को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं, जिससे मानव व जीव-जन्तुओं को परेशानी होती हैं। ध्वनि प्रदूषण कारखानों में चलने वाली तेज आवाज वाली मशीनों तथा अन्य तेज आवाज वाले यंत्रों, सड़क पर चलने वाले वाहनों, पटाखे, लाउड स्पीकर व डीजे से होता हैं। ध्वनि प्रदूषण मनुष्य तथा जीव-जन्तुओं के स्वास्थ्य पर नेगेटिव असर डालता हैं। ध्वनि प्रदूषण के कारण मनुष्य व पशु-पक्षी खुंखार व असहज हो जाते हैं। इससे मनुष्य व पक्षी चिड़ेचिड़े, तनावग्रस्त व खुंखार हो जाते हैं। ध्वनि प्रदूषण से मानसिक व दिल की बिमारियाँ हो जाती हैं। ध्वनि प्रदूषण से कानों से कम सुनायी देना शुरू हो जाता है। ध्वनि प्रदूषण से मानसिक तनाव, दिमाग का असंतुलित होना, आक्रामक होना आदि कई रोग होते हैं।
यह तो हुआ
ध्वनि प्रदूषण जो
घर के बाहर होता हैं।
इसकी रोकथाम के
लिये सरकार कई
कडे़ नियम बनाती
हैं। वाहनों की
जाँच, वाहनों मे
ज्यादा आवाज करने
वाले होर्न को
रोकना, शादी मे डीजे व
भजन आदि के लिये लाउडस्पीकर
बजाने पर 10 बजे
के बाद रोक लगाना, स्कूलों
व अस्पतालों के
आस-पास होर्न
का शोर नहीं
मचाना आदि अनेक
प्रतिबन्ध लगाने के
लिये सरकार ने
कडे़ कानून बना
रखे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने
ध्वनि प्रदूषण के
शोर मापने के
मानक तय किये हैं। निंद्रा
अवस्था में रात के समय
शोर 35 डिसिबल से
ज्यादा नहीं होना
चाहिए तथा दिन के समय
में 45 डिसिबल से
ज्यादा नहीं होना
चाहिए।
अधिक ध्वनि प्रदूषण
से बच्चां की
नींद में गड़बड़ी,
उच्च रक्तचाप, तनाव
की बढ़ोतरी, हदय
रोग, याददास्त में
कमी, बहरापन, एकाग्रता
की कमी, अवसाद,
चिड़ाचिड़ापन, बात करने
में परेशानी आदि
बिमारियाँ होती हैं।
ध्वनि प्रदूषण से
गर्भवती महिलाओं के
व्यवहार मे चिड़ाचिड़ापन
तो आता ही हैं, अधिक
ध्वनि प्रदूषण कई
बार गर्भपात की
स्थिति बन जाती हैं। पशुओं
का नर्वस सिस्टम
प्रभावित होता हैं
वे अधिक हिंसक
हो जाते हैं।
हमारे घरों में
भी शोर और ध्वनि प्रदूषण
प्रतिदिन होता हैं।
आजकल सभी घरों
में स्टील के
बर्तन होते हैं।
उनको धोते समय
बहुत अधिक शोर
होता हैं। कई घरों में
सब सदस्यों की
तेजी से बोलने
की आदत होती
हैं। यदि बच्चों
से तेज आवाज
में प्रश्न पूछेगें
तो बच्चा उससे
भी तेज आवाज
में उत्तर देगा।
घर में शोर हो जाता
हैं। कई बार बच्चों को
पढ़ाने वाला ट्यूटर
बहुत तेज आवाज
में पढ़ाकर अपनी
उपस्थिति जाहिर करता
हैं। कुछ बच्चों
की तेज आवाज
में रीडिंग लगाने
की आदत होती
हैं, ताकि उनकी
आवाज पेरेन्टस तक
पहुँच जाये व उनको पता
चले कि बच्चा
पढ़ रहा हैं।
अक्सर घरों में
काम करने वाली
बाई से तेज आवाज में
ही व्यवहार किया
जाता हैं। अपना
कोई भी गुस्सा,
किसी पर निकालने
के लिये बहुत
तेज आवाज का ही प्रयोग
होता हैं, जो घरों में
ध्वनि प्रदूषण का
मुख्य कारण हैं।
पंखे, फ्रीज, वाशिंग
मशीन आदि के भी खराब
होने पर बहुत तेज आवाज
परेशान करती हैं।
टेलीविजन की तेज
आवाज भी घर में ध्वनि
प्रदूषण का मुख्य
कारण हैं।
इस प्रकार घरों
मे होने वाले
शोर व ध्वनि प्रदूषण से परिवार
के लोग विभिन्न
बिमारियों से ग्रसित
होते हैं। जिन
बीमारियां का व
उनके घातक परिणामों
का वर्णन पहले
कर चुके है।
जैसे बाहर
का ध्वनि प्रदूषण
कम करने के लिये सरकार
व लोग प्रयास
कर रहे हैं उसी प्रकार
घर के अन्दर
का ध्वनि प्रदूषण
कम करना बहुत
आवश्यक हैं। घर में धीरे-धीरे बात
करने की आदत डालना, बर्तन
साफ करते समय
कम से कम आवाज आये,
इसका ध्यान रखना,
कपड़े धोते समय
सोटी की आवाज का ध्यान
रखना आदि। तेज
आवाज करने वाले
पंखां, एसी, फ्रीज,
वाशिंग मशीन आदि
को तुरन्त ठीक
करवाना। टी.वी. धीमी आवाज
में देखना आदि।
इस प्रकार का
अनुशासन घर में बना कर
आप घर मे ध्वनि प्रदूषण
कम कर सकते हैं व
अपने परिवार
के सदस्यों को
ध्वनि प्रदूषण से
होने वाली बीमारियों
से बचा सकते
हैं। आपका प्रयास
आपके पड़ोसियों को
भी प्रभावित व
लाभान्वित करेगा।
Comments
Post a Comment