बच्चे और इन्टरनेट
05 जून 2023 को दैनिक भास्कर में समाचार प्रकाशित हुआ कि अमेरिका के मैरीलेण्ड प्रान्त के डिस्ट्रीक स्कूल बोर्ड एवं हावर्ड काउन्ट्री पब्लिक स्कूल सिस्टम ने विभिन्न सोशल मीडिया कम्पनियों पर मुकदमा किया। उसमें इन सोशल मीडिया के खिलाफ दायर की गई अर्जी में यह कहा गया है कि विगत एक दशक ये सोशल मीडिया के प्रति विद्यार्थीयों का जुड़ाव तेजी से बढ़ा हैं। इससे बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ रहा हैं। नशे की लत जैसी बुरी आदतें सीख रहें हैं। मानसिक अवसाद, आत्महत्या, खुद को चोट पहुंचाने के साथ-साथ विद्यार्थीयों के शारीरिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा हैं। इस प्रकार के मुकदमें वाशिंगटन, फलोरिडा, न्यू जर्सी, अलबामा, टेनेसी आदि अन्य प्रांतों में भी स्कूली सिस्टम द्वारा सोशल मीडिया के विरूद्ध किए गए।
भारत में
भी कई सोशल मीडिया कम्पनियां
इसी प्रकार के
कार्यक्रम बनाकर प्रसारित
करते हैं कि बच्चा अधिक
से अधिक समय
तक उनके कार्यक्रमों
को विजिट कर
सके। हम यह बराबर देख
रहे है कि हमारे देश
में भी बड़े शहरों से
लेकर छोटे से छोटे गाँव
तक मोबाईल व
लैपटॉप विद्यार्थीयों के
हाथ में पहुँच
चुका हैं। जिसका
सदुपयोग की बजाय दुरूपयोग अधिक हो रहा हैं।
परिणामतः विद्यार्थी में अनेक
दुर्गुण व बीमारियाँ
तीव्रगति से पनप
रही हैं। अवसाद,
सिरदर्द, नेत्ररोग, पाचन संस्थान
के रोग, मधुमेह,
मोटापा, शरीर का बेडोल होना,
स्फूर्ति की कमी,
चिड़चिड़ापन, अकेलापन पसंद करना,
परिवार से दूर रहना आदि।
इतनी सारी
समस्याओं की जड़
एकमात्र सोशल मीडिया
हैं। विद्यार्थी की
आयु व समय यह निर्णय
करने में सक्षम
नहीं होती कि अच्छा क्या
है और बुरा क्या हैं?
अच्छाई और बुराई
के दो राहें
पर खड़े बच्चे
वही काम करते
हैं जिसमें उन्हें
मजा आये और भद्दे व
अश्लील कार्यक्रम उसको
अच्छे लगने लगते
हैं। आप देखते
होंगे कि बच्चा
जब मग्न होकर
मोबाईल या लैपटॉप
को देख रहा होता हैं
और परिवार का
सदस्य जब उसकी तरफ झांकता
है तो वह तुरंत प्रोग्राम
बदल देता हैं।
उसके चेहरे के
हाव भाव से भी पता
चल जाता हैं
कि वह कुछ अवांछनीय देख रहा हैं। बच्चा
यह चाहता है
कि मैं क्या
देख रहा हूँ उसका पता
किसी अन्य को न हो।
अपने जीवन का अमूल्य समय
सोशल मीडिया पर
फालतू प्रोग्राम देखने
में नष्ट कर रहा हैं।
स्थितियाँ अत्यंत गंभीर
बन गई हैं। इस विषय
में प्रत्येक परिवार
के माता-पिता
को अपने-अपने
बच्चों पर विशेष
निगरानी रखकर, इस
आदत से बच्चे
को छुटकारा दिलाना
हैं। बच्चे का
इंटरनेट प्रयोग का
समय निर्धारित करें।
उस समय में उसको अकेला
नहीं छोड़े। इंटरनेट
पर देखें गए
कार्यक्रम के बारे
में जानकारी लें।
किस जरूरी काम
के लिए इंटरनेट
का उपयोग करना
हैं यह उससे पहले पूछ
लें। अपने बच्चे
को बहुत ही प्यार से
मित्रवत व्यवहार करते
हुए इंटरनेट की
कमियाँ और अच्छाईयों
के बारे में
नियमित रूप से चर्चा करते
रहें। इस विषय पर परिवार
के सभी सदस्य
मिलकर सामूहिक डिबेट
भी घर में साप्ताहिक रूप से करते रहें।
इससे बच्चों को
स्वंय ही यह ज्ञान हो
जाएगा कि मुझे क्या करना
हैं और क्या नहीं करना
हैं?
माना कि
आप स्वंय के
कार्यो में अत्यंत
व्यस्त रहते हैं।
बच्चे की पढ़ाई स्कूल, टयूशन,
कोचिंग पर ही
100 प्रतिशत निर्भर हैं।
ऐसी अवस्था में
बच्चों का भटकना
स्वभाविक हैं। अतः
अपने व्यस्तम समय
में से अपने बच्चे के
लिए समय जरूर
निकालें। माता और
पिता में से किसी एक
को सवेरे और
शाम को जैसा भी आप
अपनी सुविधा के
अनुसार बच्चे के
साथ-साथ घुल मिलकर उसे
होमर्वक कराएं, अतिरिक्त
पढ़ाई कराएं, नैतिक
शिक्षा की जानकारी
दें, स्वास्थ्य सम्बन्धी
टिप्स बतावें, आचार-विचार व
अनुशासन सिखावें। इस
प्रकार की स्कूल
की शिक्षा के
अतिरिक्त शिक्षा भी
दें। शिक्षा देते
समय बच्चे को
यह अनुभव होना
चाहिए कि मेरे माता-पिता
मेरे साथ खेल रहे हैं।
उसे यह अनुभव
नहीं होना चाहिए
कि मुझे दबाव
में पढ़ाया जा
रहा हैं। खेल
खेलने के बाद सभी खिलाड़ियों
को आनन्द की
अनुभूति होती हैं मानसिक
हल्कापन आता हैं,
शरीर में स्फूर्ति
बनती हैं, आदि
कई सकारात्मक बातें
माता-पिता और बच्चों के
मन में स्वतः
आ जाती हैं।
इस काम को लगातार तथा
निर्विघ्न करना चाहिए।
आप स्वंय कुछ
ही दिनों में
यह अनुभव करेंगे
कि मेरे बच्चे
कितने खुश हैं।
बच्चें की खुशी ही हर
माता-पिता की परम इच्छा
होती हैं।
Very useful article
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