स्वान्तयसुखायः

 श्री बसंत कुमार बिरला ने अपने जीवन के तीसरे पड़ाव में एक पुस्तक लिखी थी। जिसका नाम था ‘‘स्वान्तयसुखायः‘‘ यह पुस्तक उन्होनें बाजार में नहीं बेची। अपने कुटुम्बियों, सम्बन्धियों और जान पहचान वालों को उपलब्ध करवाई। इसके बारे में अखबार में पुस्तक समीक्षा कॉलम में पढ़ा। मेरी रूचि जागी। मैनें श्रीमति सरला बिरला को यह पुस्तक उपलब्ध करवाने की प्रार्थना की। बहुत जल्दी ही वो पुस्तक मुझे मिल गई। पूरा पढ़ा। दुबारा-तिबारा पढ़ा। उन्होनें अपने पारिवारिक जीवन की घटनाओं का बड़े सुंदर शब्दों में और स्पष्ट रूप से उल्लेख किया। सत्य सदैव सुन्दर होता हैं।

पुस्तक की भूमिका में उन्होनें कई सुंदर-सुंदर बातें लिखी। मुख्य बात जो उनकी मुझे बहुत अच्छी लगी वह यह कि उन्होनें लिखा यह पुस्तक मैनें अपने खुद के मन के सुख के लिए लिखी। इसके अलावा इस पुस्तक को लिखने का मेरा कोई उद्देश्य नहीं हैं। बसंत कुमार जी ने दो लाईनों में गागर में सागर भर दिया।

हमें चाहिए कि हम ऐसे काम करें, जिससे हमारे मन को सुख मिले। कभी ऐसा कार्य नहीं करें, जिसे करने के बाद आपका स्वंय का मन दुःखी हो। कोई भी काम करने से पूर्व या बोलने से पूर्व भली भांति सोचकर, उसके परिणाम क्या होने वाले हैं, उसके बारे में सचेत रहें। यदि आपको लगता हैं तो मेरे किसी कार्य से मेरे ही मन को दुख होगा तो उस कार्य को टालते रहें। जिस कार्य को करने से आपके मन में सुख की अनुभूति हो उसे बिना समय गंवाए तुरंत कर देना चाहिए। बसंत कुमार बिरला जी की यह पुस्तक यदि उपलब्ध हो तो आप उनके ऑफिस में संर्पक करके अवश्य मंगवाकर पढ़े। आप आनन्द विभोर हो जायेंगें।

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