बच्चे कल के भाग्य विधाता
हमारी कॉलोनी में शर्मा जी के बेटे की शादी होकर नई-नई बहु आई। बहु को आये तीन-चार महीने हो गये। बहु ग्रेजुएट हैं। मध्यम परिवार से ही हैं लेकिन अभी भी उसे चार आदमी के लिए सब्जी रोटी बनाना, कपड़े धोना, घर में साफ-सफाई रखना, घर के चार बर्तन साफ करना आदि अनेक काम उसको करना ही नहीं आता। शर्मा जी की कई बार तो ऐसी परिस्थिति बनती थी कि घर में चार मेहमान आ जाए तो उनको पानी, शर्बत, चाय आदि परोसना नहीं आता। शर्माजी की पत्नी उसको सभी काम जो घर में बहु को करने होते हैं, सिखाने का प्रयास करती रहती। उसने कभी भी अपने बेटे से बहु की शिकायत नहीं की, कि उसको कुछ आता ही नहीं हैं। लेकिन बात कितने दिन छुपती? आखिर घर में सबको पता चल ही गया कि इसको तो कुछ आता ही नहीं हैं। दिनभर फोन पर व्यस्त रहना, टेलीविजन के पारिवारिक प्रोग्राम नियमित रूप से देखना और अपने पति के साथ ज्यादा से ज्यादा समय घुमने फिरने की इच्छा रखती थी। दिन में समय निकालकर दो घंटा मार्केट में घुमने जाती थी। रोज अनावश्यक सामान खरीद कर लाती थी। वह सामान घर में सिरदर्द बनता था। फिजूल खर्ची उसकी आदत बन गयी थी। परिवार का हर सदस्य उसकी आदतों को लेकर दुखी था। बहुत प्रयास किया गया फिर भी बहु की आदतों में कोई सुधार नहीं आया और परिणामतः परिवार में हर समय किच-किच होती रहती थी।
ऐसी घटनाएँ समाज
में आजकल बहुत
बढ़ती जा रही हैं। माता-पिता अपने
बच्चों को लाड़ प्यार में
घर के काम नहीं करवाते
हैं। बचपन में
यदि छोटे-छोटे
काम करने की आदत नहीं
डाली गई तो बच्चों का
शारीरिक व मानसिक
विकास नहीं हो पाता हैं।
छोटी उम्र में
सीखा हुआ काम उसके जीवनभर
काम आता हैं।
यदि बचपन में
बच्चों को छोटे-छोटे घरेलू
काम नहीं सिखाये
गये तो बड़े होकर सीखना
कठिन होता हैं।
विशेषकर लड़कियों को
घर की साफ-सफाई, झाडू-पोछा लगाना,
किचन के सभी काम, तरह-तरह की
सब्जियाँ बनाना, कपड़े
धोना, सुखाना व
समेटकर व्यवस्थित करना,
अतिथि सत्कार आदि
सभी काम सिखाने
चाहिए, ताकि बड़े
होकर जब ससुराल
जाये ंतो वहाँ
पर अपने परिवार
को सही ढंग से संभाल
सके।
बचपन में ही
बच्चों को स्वास्थ्य
के सारे टिप्स
की जानकारी देनी
चाहिए। समय पर उठना, समय
पर सोना, व्यायाम
करना, अपने शरीर
की सफाई रखना,
सात्विक भोजन बनाना
और सात्विक भोजन
खाना, मितव्यता आदि
काम सिखाने चाहिए।
टाईम टेबल बनाकर
उसके ऊपर चलने
की शिक्षा बचपन
से देनी चाहिए।
उनका डाईट चार्ट
बनाकर उसके अनुसार
ब्रेकफास्ट, लंच और
डिनर करना चाहिए।
काम के साथ-साथ पारिवारिक
अनुशासन भी बचपन में ही
सिखाया जाना चाहिए
किस व्यक्ति से
किस प्रकार का
व्यवहार करना हैं,
किस प्रकार का
संबोधन करना, किस
प्रकार से अभिवादन
करना हैं ये कार्य बचपन
में सिखाना अत्यावश्यक
हैं, वरना जब बच्चे बड़े
हो जायेगें तब
आप उन्हें ज्यादा
नहीं सीखा सकते।
छोटी उम्र में
बच्चों को जिस ढांचे में
ढालोगे बच्चे उसमें
ढल जायेगें।
Very good written.
ReplyDeleteVery nice information sir.
ReplyDeleteWell expressed Sir ji..
ReplyDeleteEvery child you encounter is a divine appointment.