उदार बनें
भोजन हर घर में बनता हैं। परिवार के सदस्यों के अनुसार भोजन की मात्रा तय होती हैं। माताओं को इसका पूरा अनुभव होता हैं। किस समय क्या बनाना हैं और कितना बनाना हैं? फिर भी कई बार भोजन बच जाता हैं और उस भोजन का निस्तारण सहीं ढंग से नहीं हो पाता। रात के बचे हुए भोजन को फ्रिज में रख देते हैं। सवेरे गर्म करके खिलाया जाता हैं। यह अच्छी आदत नहीं हैं। बचे हुए भोजन का निस्तारण किसी को खिलाने में करना चाहिए। यह आपको देखना हैं कि किसको इस भोजन की अधिक आवश्यकता हैं? इसका निर्णय आपको करना होगा और भोजन का निस्तारण फ्रिज, डस्टबीन नहीं होता हैं बल्कि किसी आवश्यक व्यक्ति के मुँह में जाना चाहिए।
फैशन के
युग में कपड़े
व जूतों की
अनाप-सनाप खरीददारी
बिना समझे होती
रहती हैं। नतीजा
यह होता हैं
कि जूते व कपड़े फटते
तो है नहीं बच्चों के
नाप से छोटे जरूर हो
जाते हैं और बड़ों के
कपड़े ऑऊट ऑफ फैशन हो
जाते हैं तथा पहनते-पहनते
मन भी ऊब जाता हैं।
कपड़ों व जूतों से अलमारियाँ
भर जाती हैं।
उनका निस्तारण समय-समय पर
गरीबों को या जिन्हें जरूरत हो
उनको देते रहना
चाहिए। फालतू भीड़
घर में नहीं
करनी चाहिए। कई
लागों की आदत होती हैं
कि फ्री में
क्यों दिया जाये?
पुराने जुते व कपड़े खरीदने
वाले कबाड़ी को
देंगें और कुछ पैसे मिल
जायेंगें। इस आदत
को सुधारना होगा
तभी आप पुराने
कपड़े और जूते पहनने योग्य
होने पर भी आपको कबाड़
लगते हैं। इनको
आप किसी ऐसे
व्यक्ति को दे, जिसको इनकी
नितांत आवश्यकता हैं।
यह ध्यान रखें
की गर्म कपड़े
सर्दी शुरू होते
ही निकालकर बांट
लें ताकि उनका
पूरा सदुपयोग हो
सके।
स्रकारी स्कूलों में
तो सरकार द्वारा
प्रकाशित पाठ्य पुस्तकें
ही उपलब्ध कराई
जाती हैं। लेकिन
प्राईवेट स्कूलों में अलग-अलग प्रकाशकों
की बहुत मंहगी
पुस्तकें खरीदने के
लिए बाध्य किया
जाता हैं। बच्चा
अगली क्लास में
चला जाता हैं
तो पिछली क्लास
वाली पुस्तकें किसी
काम की नहीं रहती हैं।
क्योंकि उन स्कूलों
में हर वर्ष नई पुस्तकें
मंगवाई जाती हैं।
पहले तो पुस्तकें
कई-कई साल तक बदलती
नहीं थी। अतः दूसरे छात्रों
के काम आ जाती थी।
आजकल माता-पिता
इन पुस्तकों व
कॉपीयों को 1-2 रूपयें
किलों में रद्दी
में बेचते हैं।
यह तरीका उचित
नहीं हैं। करना
यह चाहिए कि
इन पुस्तकों को
पढ़ने वाले बच्चों
को जो खरीदने
की क्षमता नहीं
रखते हैं उन्हें
आवश्यकतानुसार भेंट कर
देनी चाहिए ताकि
किसी के काम तो आएगी।
घर में
रोज नये-नये तरह के
खिलौने लाये जाते
हैं। पुराने खिलौनों
से बच्चे का
मन भर जाता हैं। वे
पुराने खिलौने कबाड़
की तरह इधर-उधर बिखरे
रहते हैं। पुराने
खिलौने भी आप उन बच्चों
को समय-समय पर बांट
सकते हैं जो आपकी तरह
महंगे खिलौने नहीं
खरीद सकते। जरूरतमंद
बच्चों को पुराने
खिलौने देकर आपको
आनंद की अनुभूति
होगी।
इतना ही नहीं
हम कई प्रकार
से जरूरतमंदो की
मदद कर सकते हैं जिसमें
हमारा कुछ खर्च
नहीं होता। आपके
द्वारा की गई मदद उसके
लिए वरदान साबित
होगी। इस विषय पर पारिवारिक
सदस्यों के साथ विचार विमर्श
करके योजना बनानी
चाहिए। आपकी उदारता
समाज को सक्षम
बनाने में मदद करेगी। यह
उदारता सर्व प्रथम
अपने आसपास से
शुरू करनी चाहिए।
True, you are doing such an amazing job by publishing such wonderful articles!
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