प्राकृतिक बदलाव : खतरे की घण्टी

 विश्व की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट पर 17 बार सफलतापूर्वक विजय प्राप्त करने वाले ब्रिटिश पर्वतारोही केंटन कूल ने लिखा की अब एवरेस्ट पर्वत सूखी चट्टान में बदल रहा हैं। उतनी ऊँचाई पर बर्फ का नहीं होना खतरे का संकेत हैं। केंटन कूल के साथ-साथ अनेक पर्वतारोहीयों ने भी इस बात को स्वीकार किया हैं कि माउंट एवरेस्ट कम बर्फ की वजह से सूखा-सूखा लग रहा हैं। ग्लोबलवार्मिंग की वजह से बरसात कम हो रही हैं। परिणामतः बर्फ भी कम बनती हैं। यह सब खतरनाक पर्यावरणीय परिवर्तन का संकेत हैं।

               इसी प्रकार विश्व में सर्वाधिक बरसात होने वाला क्षेत्र चेरापूंजी, जहाँ 480 इंच बरसात प्रतिवर्ष होती थी वहाँ के लोग पानी के लिए तरस रहे हैं। पीने के पानी के लिए बाल्टी लेकर लाईने लगी हुई हैं। जैसे अकाल के समय रेगिस्तान में पानी की मारामारी होती हैं। बिना मौसम की बरसात बाढ़ लोगों को दुःखी कर देती हैं। सर्दी पूरी नहीं होती उसके पहले ही गर्मी अपना तांडव दिखाना शुरूकर देती हैं। भयंकर गर्मी में भी तीव्र आलोवृष्टि इस वर्ष हुई हैं। इससे यह मालूम होता हैं कि पर्यावरण किस तरह नष्ट होकर बदला ले रहा हैं।

               फितरती इंसान बहानाबाजी में और अपना दोष दूसरे पर मंढ़ने में शातिर हैं। हम सबकी गलतियों के कारण ही हमारे प्राकृतिक संसाधन नष्ट हुए, पर्यावरण को बिगाड़ा अतः अब जिम्मेवारी भी हमारी हैं कि इसको वापस स्वस्थ करें। प्रकृति जब बदला लेती हैं और जब लाठी मारती है उसमें आवाज नहीं होती हैं। प्रतिकूल प्रकृति को अनुकूल बनाने के लिये अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना, प्राकृतिक साधनों का सदुपयोग करना, जल ऊर्जा की बचत करना, जैविक खेती को बढ़ावा देना, प्राकृतिक जीवन की ओर अग्रसित होना आदि अनेक कार्य करने चाहिये।

Comments

  1. We should start acting now to save our mother earth. You are doing a wonderful job sir, by sensitising people on such important issues. I am sure PPL will take these articles seriously and we will see positive changes in coming years.

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  2. Excellent article on latest problem of modern world.

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  3. Really we can get benefits only by obeying Nature and avoid interference with her !

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