अमूल्य आभूषण : मितव्यता
मध्यमवर्गीय और उच्चवर्ग के परिवारों में घर खर्च इतना बढ़ गया हैं कि उनकी कमाई से पूरा नहीं पड़ रहा हैं। घर में पति पत्नी दोनों नौकरी करते हो या व्यापार करते हैं और बच्चे भी एक या दो ही है तब भी उन्हें छोटी-छोटी आवश्यकताओं के लिए ऋण लेना पड़ता हैं। समान बेचने वाली कम्पनियां विभिन्न प्रकार की समान उधार बेचने की आकर्षक योजनाएँ प्रचारित करती रहती हैं। कई बार जेब में पैसा नहीं और कम्पनी की स्कीम का लालच देखकर जिस वस्तु की आवश्यकता नहीं हैं, उसे भी EMI पर खरीद कर घर ले आते हैं। परिणाम यह होता हैं कि उनको मिलने वाले मासिक वेतन में EMI की कटौती होकर ही बाकि पैसे उनके खाते में जमा होते हैं।
इस प्रकार हर
महीने एक से एक आकर्षक
योजनाएँ कम्पनीयाँ निकालती
रहती हैं और व्यक्ति अनावश्यक चीजों
को घर में भरता रहता
हैं। एक समय ऐसा आता
हैं कि उसके घर में
फालतू सामान की
भीड़ लग जाती हैं। जिसका
उपयोग वह वर्ष में दो-चार बार
ही करता हैं।
वह सामान उसके
लिए सरदर्द बन
जाता हैं। कई बार तो
तंग आकर कुछ सामान को
ओने पोने दाम
में कबाड़ी को
बेचना पड़ता हैं।
प्रतिमाह लिए गये
लोन की EMI बढ़ती
ही जाती हैं।
परिणामतः कई बार
तो आधा वेतन भी
उसके हाथ नहीं
लगता। ऐसी परिस्थिति
में जब कोई अत्यावश्यक खर्च आ जाये जिसके
ऊपर ऋण भी संभव नहीं
हो तो व्यक्ति
दुविधा में पड़ जाता हैं
और वह अपने मित्रों से कुछ समय के
लिए कुछ पैसे
उधार मांगता हैं।
ऐसी परिस्थिति ऐसे-ऐसे लोगों
में देखी हैं
जिनका वेतन पचास
हजार से भी अधिक प्रतिमाह
होता हैं।
आवश्यकताएँ बढ़ाना तो
हाथ की बात हैं। उसमें
कोई मेहनत नहीं
करनी पड़ती लेकिन
आवश्यकताओं को सीमित
रखना एक समझदारीपूर्ण
कला हैं। मितव्यता
व्यक्ति के चरित्र
का आभूषण हैं।
कहाँ कितना खर्च
करना हैं, कहाँ
कितनी बचत करनी
हैं। इसकी प्राथमिकता
सभी कमाने वाले
पारिवारिक सदस्यों की सलाह से तय
होनी चाहिए। हर
महीने का आय-व्यय का
लेखा-जोखा (बजट)
में बनाना चाहिए
और उसके अनुसार
ही चलना चाहिए।
भोजन व्यक्ति की
प्रथम आवश्यकता है।
परिवार को शुद्ध
सात्विक, पोषक, स्वास्थ्यप्रद
भोजन मिलता रहें
यह परिवार के
मुखिया का प्रथम
दायित्त्व हैं। लेकिन
आजकल खाने के नाम पर
अनाप-सनाप फिजूलखर्ची
हो रही हैं।
जिन खाद्य पदार्थों
की आवश्यकता नहीं
उनको भी खरीद कर घर
में रखते हैं।
फास्टफूड, पैक्डफूड बाजार में
इतने सारे हैं
कि व्यक्ति अपनी
जीभ को नियंत्रण
में नहीं रख सकता। भले
ही बाद में स्वास्थ्य तो खराब होता ही
हैं और पैसा भी निकल
जाता हैं।
भोजन के बाद
दूसरी आवश्यकता कपड़ों
की होती हैं।
आजकल फैशन में
परिवार के सभी सदस्यों के लिए नये-नये
फैशन के कपड़े हर महीने
खरीद लिये जाते
हैं भले ही उनकी आवश्यकता
नहीं हैं। पहले
से बीस-बीस ड्रेसें व दस-दस जोड़ी
जुते घर में रखे हैं।
फिर भी बाजार
जायेंगें तो अनावश्यक
रूप से जरूर नया खरीद
लायेंगें। परिणामतः घर में पुराने कपड़ें
और जुतों का
भण्डार भरता जाता
हैं। उनको संभालकर
रखना भी मुश्किल
हो जाता हैं।
बच्चों को अच्छी
शिक्षा देना हर माता-पिता
का कत्तर्व्य होता
हैं। माता-पिता
चाहते हैं कि मेरे बच्चों
के सर्वांगीण विकास
के लिये एडमिशन
ऐसी स्कूल हो
जहां उसे सबकुछ
सिखाया जाए। हमें
कुछ नहीं करना
पड़े। कई स्कूले माता-पिता की
इस मनोभावनाओं को
समझते हुये बच्चों
के लिए ब्रैकफास्ट
व लंच की व्यवस्था अपने यहाँ
करती हैं और माताएँ बच्चे
के लिए न तो नाश्ता
बनाती हैं न लंच पैक
करती हैं। नाश्ता
व लंच को एक बहुत
बड़ा बोझा समझती
हैं। जब एक-दो बच्चे
को आप नाश्ता
नहीं दे पाती,
तो स्कूल में
सैकड़ों बच्चों को
कुछ कर्मचारी प्रत्येक
बच्चे का व्यक्तिगत
ध्यान कैसे दे पायेंगें। नतीजा यह
होता है कि आपका बहुत
सा धन नाश्ता
और लंच के नाम पर
स्कूल वाले ले लेते हैं।
जो काम घर पर 5 रूपये
हो जाता हैं।
उसके बदले में
20 रूपये खर्च हो
जाते हैं और आपका पैसा
हर महीने फालतू
खर्च होता हैं।
इस प्रकार न
जाने कितनी ही
मदों में अनावश्यक
खर्च होता हैं।
इस विषय पर गंभीरतापूर्वक चिंतन करके
फिजूलखर्ची को बंद
करना होगा। आपकी
आमदनी प्रतिवर्ष कितनी
ही मिल जाये,
यदि फालतू खर्चो
को नहीं रोका
गया तो किसी भी सूरत
में बचत नहीं
होगी और सदैव पैसे की
कमी महसूस करते
रहेंगें। जो परिवार
में अशान्ति का
मुख्य कारण होता
हैं। पारिवारिक शांति
व समृद्धि चाहते
हैं तो मितव्ययी
बनिये। सभी प्रकार
के फालतू खर्चो
को और आडम्बरों
को बन्द करें।
दिखावा व आडम्बर
फालतू खर्च कराता
हैं।
Nice and impressive
ReplyDeleteSir, every one is becoming pray for marketing tactics.
ReplyDeleteNeed to think about it.
👏👏👍
ReplyDeleteThis is the part of cycle for the dynamic economic
ReplyDeleteI totally agree with you sir!
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