सस्ते ही होते हैं ग्रामीण सुपरफूड
संयुक्त राष्ट्र संघ ने 28 मई को विश्व पोषण दिवस घोषित किया हैं। भोजन में पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य सामग्री का समावेश करना और इसके बारे में लोगों को जागरूक करना इसका मुख्य उद्धेश्य हैं। भारत में 1 सितम्बर से 7 सितम्बर तक प्रतिवर्ष राष्ट्रीय पोषण दिवस मनाया जाता हैं। लोगों को विटामिन्स, प्रोटीन, खनिज लवण आदि तत्त्वों के बारे में जानकारी दी जाती हैं। विशेषकर बच्चों और महिलाओं में कुपोषण अधिक देखा गया हैं। कुपोषण का मुख्य कारण जानकारी की कमी और निर्धनता हैं।
आवश्यक नहीं हैं
कि अच्छे पोषण
के लिये सामग्री
महंगी हो। ज्यादातर
स्थानीय खाद्य पदार्थ
आसानी से उपलब्ध
होने वाले, सीजनल,
सबके लिए सुलभ
और सस्ते होते
हैं। शाकाहारी लोगों
के लिए दालें
प्रोटीन की पूर्ति
करती हैं। मूंग
सब जगह सस्ती
कीमत पर उपलब्ध
हैं। कई जगह इसकी किसान
खेती करते हैं
और घरों में
दाल और मोगर भी बनाते
हैं। मूंग की दाल से
कई प्रकार के
खाद्य पदार्थ और
पकवान बनाये जाते
हैं। जो प्रोटीन
का सबसे सस्ता
स्रोत हैं। दूध,
दही, घी, मक्खन,
छाछ आदि उत्पाद
गाँवों में आसानी
से हर घर में उपलब्ध
होते हैं। किसान
अपने घर में दुधारू पशु
जरूर रखते हैं।
मुख्यतः गाँवों में
मोटा अनाज ही खाया जाता
हैं। जिसमें ज्वार
व बाजरा प्रमुख
हैं। यह दोनों
मिलेट्स भरपूर पोषण
देते हैं। सब्जियों
के रूप में खरीफ की
फसलों के साथ-साथ टिण्डा,
ग्वारफली, मतीरा, चवला,
काचरा, काकड़ी खेतों
में पैदा होती
हैं। कंकेड़ा (बाड़
करेला), खींप की फलियाँ, थोर के पत्ते, ग्वार-पाठा आदि
पौधे सर्वत्र उपलब्ध
रहते हैं। ग्रामीण
इनका प्रयोग सब्जी
के रूप में अनादि काल
से करते आ रहे हैं।
ये सब्जियाँ 100 प्रतिशत
ऑर्गेनिक और पोषकतत्त्वों
व स्वाद से
भरपूर होती हैं
और गाँवों में
सबको निःशुल्क उपलब्ध
हैं।
किसान के खेतों
में खेजड़ी, कुमट,
देशी बबूल, केर
आदि वृक्ष बहुतायत
में पाये जाते
हैं। इनमें लगने
वाले फल कच्चे
होने पर सब्जी
के काम और पकने पर
रसीले फलों के रूप में
सेवन करते हैं।
गर्मियों के पोषकतत्त्वों
से भरपूर पीलू,
ठालू, गुंदी, गूंदा,
खोखा (सांगरी) आदि
रसीले फलों के रूप में
गरीब से गरीब भी प्रयोग
करता हैं। थोड़ी
सी सिंचाई करके
सहजन का पेड़ आसानी से
उगाया जा सकता हैं। यह
पूरे भारतवर्ष में
आसानी से उगता हैं। इसके
पत्ते और फलियाँ
विटामिन, खनिज, केल्शियम,
प्रोटीन, फासफोरस, आयरन आदि
अमूल्य तत्त्वों से
भरपूर होता हैं।
नीम के पके फल भी
रसीले व मीठे होते हैं
बच्चे बड़े चाव से खाते
हैं। कई जिलों
में महुआ के फूलों को
मेवे की तरह प्रयोग में
लिया जाता हैं।
कई प्रकार के
व्यंजन महुआ से बनाये जाते
हैं जो पोषक तत्त्वों से भरपूर
होते हैं। महुआ
की शराब भी बनायी जाती
थी। बेर पूरे
भारत में प्राकृतिक
रूप से पाया जाता हैं।
हर रीजन में
अलग-अलग वैरायटी
बेर की पायी जाती हैं।
जामुन के पेड़ भी गाँवों
में पाये जाते
हैं। अरावली की
पहाड़ियों में क्षेत्रफल
बहुत लम्बा चौड़ा
हैं। इन पहाड़ियों
में महुआ, देशी
आम, गूंदी, बेर,
जामुन, फालसा, नीम,
बेल के साथ-साथ कई
भोज्य पदार्थ व
जड़ी बूटियां अलग-अलग सीजन
में प्राकृतिक रूप
से निःशुल्क उपलब्ध
रहते हैं। जो
100 प्रतिशत ऑर्गेनिक के साथ-साथ विभिन्न
प्रकार के पोषक तत्त्वों की खान होते हैं।
इनका प्रयोग ग्रामीण
लोग बहुतायत से
करते हैं। सस्ते
खाद्य पदार्थो में
भी पोषक तत्त्व
भरपूर मात्रा में
पाये जाते हैं।
इनकी लिस्टींग व
चार्ट बनाकर व्यवस्थित
रूप में अपनी
भोजन सामग्री में
सम्मिलित करना चाहिए।
ऐसा करके कम खर्च में
अधिक पोषक तत्त्व
हमारे भोजन में
सम्मिलित कर सकते
हैं।
Well written and explained!
ReplyDeleteYour article beautifully highlights the significance of affordable rural superfoods. Your research and insights have truly motivated me to explore this topic further.
ReplyDelete"I'm inspired by your dedication to shedding light on the importance of inexpensive rural superfoods. Your writing has given me a renewed sense of purpose in promoting healthier food options for everyone."
ReplyDeleteThank you for writing about the affordability of rural superfoods. Your passion and enthusiasm for this topic are contagious, and it has encouraged me to support local farmers and promote sustainable food practices."
ReplyDeleteYour article on the affordability of rural superfoods is incredibly empowering. It's refreshing to
ReplyDelete